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________________ [२] श्वेताम्बर परम्परा मान्य आगम ग्रन्य २०] तत्थ णं जे से दाहिणपच्चथिमिल्ले रतिकरगपवते, तस्स णं चउदिदसिं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसोणं जंबुद्दीवपमाणमेत्ताओ चतारि रायहाणीओ पण्णताओ, तं जहा-भूता, भूतवडेंसा, गोथूभा, सुदंसणा । अमलाए, अच्छराए, णवमियाए रोहिगीए। (स्थानांगसूत्र, ४/२/३४७ ) [२१] तत्थ णं जे से उत्तरपच्चस्थिमिल्ले रतिकरगपवते, तस्स णं चउद्दिसिमोसाणस्स देविंदस्स देवरण्यो चउण्हमग्गमहिसोणं जंबद्दीवप्पमाणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-रयणा, रतणुच्चया, सव्वरतणा, रतणसंचया। वसूए, वसुगुत्ताए, वसुमित्ताए, वसुंधराए। (स्थानांगसूत्र, ( ४/२/३४८ ) तस्थ णं जे से उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपवते, तस्स चउदिसि ईसाणस्स देविंदस्स देवरगो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहाणंदुत्तरा, णंदा, उत्तरकुरा, देवकुरा। कण्हाए, कण्हराईए, रामाए, रामरक्खियाए। (स्थानांगसूत्र, ४/२/३४५ ) जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं रूयगवरे पवते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहारिटे तवणिज्ज कंचण, रयत दिसासोत्थिते पलंबे य । अंजणे अंजणपुलए, ख्यगस्स पुरथिमे कूडा ।। (स्थानांगसूत्र, ८/९५ )* [२४] जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं रूयगवरे पन्वते अट्ठ कूडा पप्णत्ता, तं जहाकणए कंचणे पउमे, णलिणे ससि दिवायरे चेव । वेसमणे वेरूलिए, ख्यगस्स उ दाहिणे कूडा ॥ (स्थानांगसूत्र, ८/९६ )* : * द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में इन शिखरों को. रुचक पर्वत को चारों दिशाओं में स्थित __ माना है। [२३] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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