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________________ दोवसागरपण्णत्तिपइण्णय रूप में कहा जा सकता है कि द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का रचनाकाल ईस्वी सन् की द्वितीय शताब्दी से पंचम शताब्दो के मध्य कहीं रहा है। विषयवस्तु-- द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में कुल २२५ गाथाएँ हैं । ये सभी गाथाएँ मध्यलोक में मनुष्य क्षेत्र अर्थात् ढाई-द्वीप के आगे के द्वीप एवं सागरों की संरचना को प्रकट करती हैं। इस ग्रन्थ में निम्न विवरण उपलब्ध होता है ग्रन्थ के प्रारम्भ में किसी प्रकार का मंगल अभिधेय अथवा किसी की स्तुति आदि नहीं करके ग्रन्थकर्ता ने सोधे विषयवस्तु का ही स्पर्श किया है। यह इस ग्रन्थ को अपनी विशेषता है। ग्रन्थ का प्रारम्भ मानुषोत्तर पर्वत के विवरण से किया गया है। मानुषोत्तर पर्वत के स्वरूप को बतलाते हुए इसकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, जमीन में गहराई तथा इसके ऊपर विभिन्न दिशा-विदिशाओं में स्थित शिखरों के नाम एवं विस्तार परिमाण का विवेचन किया गया है ( १-१८)। ग्रन्थ का प्रारम्भ मानुषोत्तर पर्वत से होने से ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं इस ग्रन्थ का पूर्व अंश विलुप्त तो नहीं हो गया है ? क्योंकि यदि ग्रन्थकार को मध्यलोक का सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत करना इष्ट होता तो उसे सर्वप्रथम जम्बूद्वीप फिर लवण समुद्र तत्पश्चात् धातकीखण्ड फिर कालोदधि समुद्र और उसके बाद पुष्करवर द्वीप का उल्लेख करने के पश्चात् ही मानुषोत्तर पर्वत की चर्चा करनी चाहिए थी। किन्तु ऐसा नहीं करके लेखक ने मानुषोत्तर पर्वत की चर्चा से ही अपने ग्रन्थ को प्रारम्भ किया है। संभवतः इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि जम्बूद्वीप और मनुष्य क्षेत्र का विवरण स्थानांगसूत्र, जम्बद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, व्याख्याप्रज्ञप्ति तथा जीवाजीवाभिगम आदि अन्य आगम ग्रन्थों में होने से ग्रन्थकार ने मानुषोत्तर पर्वत से ही अपने ग्रन्थ का प्रारम्भ किया है। ज्ञातव्य है मानुषोत्तर पर्वत के आगे के द्वीप-सागरों का विवरण स्थानांगसूत्र एवं जीवाजीवाभिगम आदि में भी उपलब्ध होता है । ग्रन्थ में नलिनोदक सागर, सुरारस सागर, क्षीरजलसागर, घृतसागर तथा क्षोदरससागर में गोतीर्थ से रहित विशेष क्षेत्रों का तथा नन्दोश्वर द्वीप का विस्तार परिमाण निरूपित है (१९-२५ )। ___ अंजन पर्वत और उसके ऊपर स्थित जिनमंदिरों का वर्णन करते हुए अंजन पर्वतों की ऊँचाई, जमीन में गहराई, अधोभाग, मध्यभाग तथा शिखर-तल पर उसकी परिधि और विस्तार बतलाया गया है साथ ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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