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________________ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक २७ (१३०-१३१) (१) लक्ष्मीवती, (२) शेषवती, (३) चित्रगुप्ता, (४) वसुन्धरा, (५) समाहारा, (६) सुप्रतिज्ञा, (७) सुप्रबुद्धा और (८) यशोधरा । ये आठों ही दिशाकुमारियाँ दक्षिण दिशा में हैं । रुचक पर्वत पर दक्षिण दिशा में जो आठ शिखर हैं उन पर ये देवियाँ (रहती ) हैं । (१३२-१३३) (१) इलादेवी, (२) सुरादेवी, (३) पृथिवी, (५) एकनासा, (६) नवमिका, (७) शीता और आठों दिशाकुमारियाँ पश्चिम दिशा में आश्रय प्राप्त किये हुए हैं। रुचक पर्वत पर पश्चिम दिशा में जो आठ शिखर हैं उन पर ये afari ( रहती ) हैं । (४) पद्मावती, (८) भद्रा । ये (१३४- १३५) (१) अलम्बुषा, (२) मिश्रकेशी, (३) पुण्डरकिणी, (४) वारुणी, (५) आशा, (६) स्वर्ग प्रभा, (७) श्री और (८) ह्री । ये आठों दिशाकुमारियाँ सर्वज्ञ सर्वदर्शियों के द्वारा उत्तर दिशा में कही गई हैं । रुचक पर्वत पर उत्तर दिशा में जो आठ शिखर हैं उन पर ये देवियाँ ( रहतो ) हैं । (१३६-१३७) रुचक पर्वत पर एक हजार योजन ( आगे जाने पर ) द्वीपकुमार अधिपति देवों के पूर्व आदि दिशाओं के अनुक्रम से चार आवास हैं - ( १ ) पूर्व दिशा में वेडूर्य, (२) पश्चिम दिशा में मणिकूट, (३) दक्षिण दिशा में रुचक तथा (४) उत्तर दिशा में रुचकोत्तर । (१३८) ( रुचक पर्वत पर ) एक हजार योजन ( जाने पर ) ये जो चार शिखर ( द्वीपकुमार देवों के ) हैं वे ( चारों शिखर ) पूर्व आदि दिशाओं के अनुक्रम से दिशाकुमारियों के भी हैं । (१३९-१४०) (१) पूर्व दिशा में वेडूर्य, (२) पश्चिम दिशा में मणिकूट, (३) दक्षिण दिशा में रुचक तथा ( ४ ) उत्तर दिशा में रुचकोत्तर ( शिखर हैं ) । चारों दिशाओं में ( स्थित ) उन शिखरों पर पूर्व आदि दिशाओं के अनुक्रम से ये चार दिशाकुमारियाँ रहती हैं(१) सुरूपा, (२) रूपवती, (३) रूपकान्ता और ( ४ ) रूपप्रभा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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