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________________ टीकाकारस्य प्रशस्तिः श्रीमान् वेजेयनामाभूदग्रणीगुणशालिनाम् । बदरीपालवंशालिव्योमधुमणिरूजितः ॥१॥ तदीयपत्नो भुवि विश्रुताऽऽसीन्नाणाम्बनाम्ना गुणशीलसीमा। यां रेवतीति प्रथिताम्बिकेति प्रभावतीति प्रवदन्ति सन्तः ।। २।। तस्यामभूद्विश्वजनोनवृत्ति दर्दानाबुवाहो भुवि हीरपाख्यः । स्वगोत्रविस्तारनभोंऽशुमाली सम्यक्त्वरत्नाभरणार्चिताङ्गः।। ३ ।। तस्योपरोधवशतो विशदोरुकीर्तेर्माणिक्यनन्दिकृतशास्त्रमगाधबोधम् । स्पष्टीकृतं कतिपयैर्वचनैरुदारैर्बालप्रबोधकरमेतदनन्तवीर्यैः ।। ४ ।। इति प्रमेयरत्नमालाऽपरनामधेया परीक्षामुखलघुवृत्तिः समाप्ता । टीकाकार प्रशस्ति श्लोकार्थ-बदरीपाल वंशावली रूपी आकाश में सूर्य के समान ओजस्वी गुणशालियों में अग्रणी वैजेय नामक श्रीमान् हुए ॥१॥ श्लोकार्थ-गुण और शील की सीमा स्वरूप 'नाणम्ब' नाम से पृथ्वी पर प्रसिद्ध उसकी पत्नी थी। जो रेवती इस नाम से प्रसिद्ध थी तथा जिसे सज्जन लोग अम्बिका, प्रभावती इस नाम से भी पुकारते थे ॥२॥ श्लोकार्थ-उसके विश्व का हित करने की मनोवृत्ति वाला, दान देने के लिए मेघ स्वरूप, अपने गोत्र के विस्तार रूप आकाश का सूर्य और सम्यक्त्व रूप रत्नाभरण से अचिंत अङ्ग वाला संसार में हीरप नाम से प्रसिद्ध पुत्र हुआ। श्लोकार्थ-विशद और विस्तीर्ण कीर्ति वाले उस हीरप के आग्रह वश इस अनन्तवोर्य ने माणिक्यनन्दिकृत अगाध बोध वाले इस शास्त्र को कुछ संक्षिप्त किन्तु उदार (गम्भीर और उत्कट ) वचनों के द्वारा बालकों (अश्रद्धान लक्षण रूप अनादि मिथ्यात्व के कारण हेयोपादेय तत्त्व से अनभिज्ञों) को प्रबोध करने वाले (यथार्थ श्रद्धान लक्षण सम्यक्त्व रूप उद्योत से हेयोपादेय का परिज्ञान कराने वाले ) इस शास्त्र को स्पष्ट किया है॥४॥ इस प्रकार जिसका दूसरा नाम प्रमेयरत्नमाला है, . ऐसी यह परीक्षामुख लघुवृत्ति समाप्त हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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