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चतुर्थः समुद्देशः भावस्य मुद्गरादिव्यापारान्वयव्यतिरेकानुविधायित्वात् तत्कारणत्वोपपत्तेः । कपालादिपर्यायान्तरभावो हि घटादेरभावः; तुच्छाभावस्य सकलप्रमाणगोचरातिक्रान्तरूपत्वात् ।
किञ्च-अभावो यदि स्वतन्त्रो भवेत्तदाऽन्यानपेक्षत्वं विशेषणं युक्तम् । न च सौगतमते सोऽस्तीति हेतुप्रयोगानवतार एव । अनेकान्तिकं चेदम्; शालिबीजस्य कोद्रवारजननं प्रति अन्यानपेक्षत्वेऽपि तज्जननवस्वभावानियतत्वात् । तत्स्वभावत्वे सतीति विशेषणान्न दोष इति चेन्न; सर्वथा पदार्थानां विनाशस्वभावासिद्धेः । पर्यायरूपेणैव हि भावानामुत्पादविनाशावङ्गोक्रियते, न द्रव्यरूपेण ।
समुदेति विलयमृच्छति भावो नियमेन पर्ययनयस्य । नोदेति नो विनश्यति भावनयालिंगितो नित्यम् ।। ३७ ॥
इति वचनात् । वह भी असाधन है; क्योंकि वह असिद्ध आदि दोषों से दूषित है। उस अनुमान में अन्यानपेक्षत्व रूप हेतु असिद्ध है, घट आदि के अभाव का मुद्गर आदि के व्यापार के साथ अन्वय-व्यतिरेकपना पाए जाने से विनाश के प्रति मुद्गरादि के व्यापार की कारणता बन जाती है। ( कपालादि की उत्पत्ति के प्रति मुद्गरादि का व्यापार है, अभाव के प्रति नहीं, ऐसी आशंका होने पर कहते हैं ) कपालादि अन्य पर्याय का होना ही घट आदि का अभाव कहलाता है अत्यन्ताभावरूप निःस्वभाव किसी भी प्रमाण का विषय नहीं है।
दूसरी बात यह है कि अभाव यदि स्वतन्त्र ( कारणनिरपेक्ष ) हो, तब अन्यानपेक्षत्व विशेषण युक्त है, किन्तु बौद्धमत में स्वतन्त्र रूप से अभाव है नहीं, अतः विनाश के प्रति अन्य हेतु को अपेक्षा न रहने से हेतु के प्रयोग का अवतार ही नहीं है । यह हेतु अनैकान्तिक भी है (शालि बोज कोदों के अंकुरोत्पत्ति के प्रति अपेक्षा से रहित है, परन्तु शालिबीज में कोद्रव के अंकुरजनन की सामर्थ्य नहीं है, अत: साध्य के अभाव में भी साधन का सद्भाव होने से यह हेतु अनैकान्तिक है)। शालिबीज कोद्रवांकुर के जनन के प्रति अन्य को अपेक्षा नहीं रखता है, क्योंकि उसकी उसे उत्पन्न करने की सामर्थ्य ही नहीं है। बौद्ध कहते हैं कि समस्त पदार्थ विनाश स्वभावनियत हैं। विनाश स्वभाव होने पर ऐसा विशेषण अन्यानपेक्षत्व हेतु का कर देने पर उक्त दोष नहीं रहेगा, यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि पदार्थों का विनाश स्वभाव असिद्ध है। पर्यायाथिकनय से ही पदार्थों का उत्पाद और विनाश स्वीकार किया जाता है, द्रव्यार्थिक नय से नहीं। ... इलोकार्थ-पर्यायार्थिकनय के नियम से पदार्थ उत्पन्न होता है और
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