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________________ चतुर्थः समुद्देशः अथ स्वरूपसङ्ख्याविप्रतिपत्ति निराकृत्य विषयविप्रतिपत्तिनिरासार्थमाह सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः ॥१॥ तस्य प्रमाणस्य ग्राह्योऽर्थो विषय इति यावत् । स एव विशिष्यते सामान्यविशेषात्मा । सामान्य विशेषो वक्ष्यमाणलक्षणों, तावात्मानौ यस्येति विग्रहः। तदुभयग्रहणमात्मग्रहणं च केवलस्य सामान्यस्य विशेषस्य तदुभयस्य वा स्वतन्त्रस्य प्रमाणविषयत्वप्रतिषेधार्थम् । तत्र सन्मात्रदेहस्य परमब्रह्मणो निरस्तत्वात्तदितरद्विचार्यते । तत्र साङ्ख्यैःप्रधानं सामान्यमुक्तम् त्रिगुणमविवेकि विषयः सामान्यमचेतनं प्रसवर्मि । व्यक्तं तथा प्रधानं तद्विपरीतस्तथा च पुमान् ॥ ३२ ॥ इति वचनात् । चतुर्थ समुद्देश प्रमाण के स्वरूप और संख्या विषयक विवाद का निराकरण करके अब विषय विप्रतिपत्ति का निराकरण करने के लिए कहते हैं सूत्रार्थ-सामान्य विशेषात्मक पदार्थ प्रमाण का विषय है ।।१।। उस प्रमाण के ग्राह्य पदार्थ को तदर्थ कहते हैं, वह प्रमाण का विषय है। वह पदार्थ सामान्य विशेषात्मक विशेषण से विशिष्ट है। सामान्य और विशेष जिनके लक्षण हम आगे कहेंगे, वे दोनों जिसकी आत्मा हैं, यह विग्रह है । सामान्य और विशेष इन दोनों पदों का ग्रहण तथा आत्मपद का ग्रहण केवल सामान्य, केवल विशेष और स्वतन्त्र सामान्य विशेष की प्रमाण विषयता के निषेध के लिए है। इन तीनों मतों में से सत्ता मात्र देह वाले परम ब्रह्म का ('सावरण" इत्यादि सूत्र के व्याख्यान के अवसर पर पूर्वमीमांसक के साथ सर्वज्ञ के विषय में विवाद के समय ) निराकरण किया जा चुका है अतः उससे भिन्न (सांख्याभिमत प्रकृति रूप) के विषय में विचार किया जाता है। सांख्यों ने प्रकृति रूप प्रधान को सामान्य कहा है श्लोकार्थ-व्यक्त तथा अव्यक्त दोनों ही त्रिगुणात्मक ( सुख दुःख मोहात्मक ) अपृथक् या अभिन्न, विषय, सर्वसाधारण, जड़ तथा परिणामी हैं । पुरुष उन दोनों से विपरीत भी है, एवं सदृश भी ॥३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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