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तृतीयः समुद्देशः
१५१ अभावस्य वस्तुतापत्तिः; तल्लक्षणत्वाद् वस्तुत्वस्य । न चापोह्यलक्षणसम्बन्धिभेदाद् भेदः; प्रमेयाभिधेयादिशब्दानामप्रवृत्तिप्रसङ्गात् । व्यवच्छेद्यस्यातद्रूपेणाप्यप्रमेयादिरूपत्वे' ततो व्यवच्छेदायोगात् कथं तत्र सम्बन्धिभेदाद् भेदः ?
किञ्च-शाबलेयादिष्वेकोऽपोहो न प्रसज्येत; किन्तु प्रतिव्यक्ति भिन्न एव स्यात् । अथ शाबलेयादयस्तन्न भिन्दन्ति, तश्वादयोऽपि भेदका माभूवन् । यस्यान्तरङ्गाः शाबलेयादयो न भेदकास्तस्याश्वादयो भेदका इत्यतिसाहसम् । वस्तुनोपि सम्बन्धिभेदाद् भेदो नोपलभ्यते, किमुतावस्तुनि । तथाहि-एक एव देवदत्तादिः कटककुण्डलादिभिरभिसम्बद्धयमानो न नानात्वमास्तिघ्नुवानः समुपलभ्यत इति । भवतु वा सम्बन्धिभेदाद भेदस्तथापि न वस्तुभूतसामान्यमन्तरेणा
नहीं है); क्योंकि यथार्थ वस्तु में ही अन्य से संयुक्तपना, एकत्वपना, नानापना आदि विकल्पों की प्रतीति होती है । यदि अभाव में भेद माना जायगा तो अभाव के वस्तुपने की प्राप्ति होगी; क्योंकि भेदात्मकता ही वस्तुत्व का लक्षण है। अपोह्यलक्षण सम्बन्धी के भेद से अभाव में भेद माना नहीं जा सकता अन्यथा प्रमेय, अभिधेय आदि शब्दों की अप्रवृत्ति का प्रसङ्ग प्राप्त होगा। प्रमेय आदि शब्दों का व्यवच्छेद योग्य जो अप्रमेयत्व आदि है, वह यदि अतद्रूप से अर्थात् अप्रमेय आदि रूप से अप्रमेय है तो अप्रमेयादि से प्रमेय आदि का व्यवच्छेद नहीं बन सकेगा, इसलिए प्रमेय, अभिधेय इत्यादि शब्द वाच्य अपोह में सम्बन्धी के भेद से भेद कैसे माना जा सकेगा?
दूसरी बात यह है कि शाबलेय आदि में एक ही अपोह नहीं रह सकेगा, किन्तु प्रत्येक व्यक्ति को भिन्न-भिन्न ही अपोह मानना पड़ेगा। यदि कहो कि शाबलेय आदि गायें अपोह में भेद नहीं करती हैं तो फिर अश्वादिक अपोह में भेद करने वाले नहीं होना चाहिए। जिस अगोव्यावृत्ति रूप अपोह के अन्तरंग शाबलेय आदि भेदक नहीं, उसके अश्वादि भेदक हैं, यह कहना अति साहस है। पदार्थ का भी सम्बन्धी के भेद से भेद नहीं पाया जाता है तो अपोह रूप अवस्तु की तो बात ही क्या कहना ? इसे ही स्पष्ट करते हैं-एक ही देवदत्त आदि कटक, कुण्डल आदि से सम्बन्ध को प्राप्त होकर नानापन को प्राप्त हुआ नहीं पाया जाता है। अथवा सम्बन्धी के भेद से अपोह में भेद हो भी, तथापि परमार्थ रूप गोत्वादि १. इदं प्रमेयं न भवतीति ज्ञात्वा अप्रमेयत्वम्, तदा प्रमेयत्वं न भवति ज्ञानविषयं
भवति तदपेक्षयाप्रमेयरूपेण प्रमेयता । अपोहस्याप्रमेयादेः ।
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