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तृतीयः समुद्देशः
१३७ शिक्षितलक्षितम्; समानेन्द्रियग्राह्येषु समानधर्मसु समानदेशेषु विषयिविषयेषु नियमायोगात् । तथाहि-श्रोत्रं समानदेश-समानेन्द्रियग्राह्य-समानधर्मापन्नानामर्थानां ग्रहणाय प्रतिनियतसंस्कारकसंस्कार्य न भवति, इन्द्रियत्वात्, चक्षुर्वत् । शब्दा वा प्रतिनियतसंस्कारकसंस्कार्या न भवन्ति, समानदेश-समानेन्द्रियग्राह्य-समानधर्मापन्नत्वे सति युगपदिन्द्रियसम्बद्धत्वात; घटादिवत् । उत्पत्तिपक्षेऽप्ययं दोषः समान इति न वाच्यम्; मृत्पिण्ड-दीपदृष्टान्ताभ्यां कारक-व्यञ्जकपक्षयोविशेषसिद्धेरित्यलमतिजल्पितेन ।
यच्चान्यत्-प्रवाहनित्यत्वेन वेदस्यापौरुषेयत्वमिति तत्र किं शब्दमात्रस्यानादिनित्यत्वमुत विशिष्टानामिति ? आद्यपक्षे य एव शब्दाः लौकिकास्त एव वैदिका इत्यल्पमिदमभिधीयते वेद एवापौरुषेय इति । किन्तु सर्वेषामपि शास्त्राणामपौरुषेयतेति । अथ विशिष्टानुपूविका एव शब्दा अनादित्वेनाभिधीयन्ते; तेषामवगतार्थाना
पुरुष के कथन के समान प्रतीत होती है, क्योंकि समान एक कर्णेन्द्रिय से ग्रहण किये जाने वाले, उदात्त, अनुदात्त आदि समान धर्म वाले, आकाश लक्षण समान देश वाले विषय (शब्द )-विषयी (कर्णेन्द्रिय ) में प्रतिनियत कारण होने से अभिव्यक्ति के नियम का अयोग होने से एक साथ ग्रहण होता है। इसी बात को स्पष्ट करते हैं___ कर्णेन्द्रिय समान देश, समान इन्द्रियग्नाह्य और समान धर्म वाले अर्थों (गकारादि शब्दों ) के ग्रहण करने के लिए प्रतिनियत पृथक्-पृथक् लक्षग वाली वायु के संस्कार से संस्कारित नहीं होती है। क्योंकि वह इन्द्रिय है, जैसे-चक्षु । अथवा शब्द प्रतिनियत संस्कारों से संस्कारित नहीं होते हैं। क्योंकि समान देश, समान इन्द्रियग्राह्य और समान धर्म वाले होकर एक साथ श्रोत्र इन्द्रिय से सम्बन्ध को प्राप्त होते हैं। जैसेघटादि । उत्पत्ति पक्ष में भी यह दोष समान है, यह नहीं कहना चाहिये। क्योंकि मिट्टी का पिण्ड और दीपक के दृष्टान्त से कारक और व्यञ्जक पक्ष में विशेषता सिद्ध है, अतः अधिक कहने से बस।।
और मीमांसकों ने जो प्रवाह की नित्यता से वेद की अपौरुषेयता कही, उस पर हमारा प्रश्न है कि वेद के अपौरुषेयत्व में क्या शब्द मात्र के अनादि नित्यता है या विशिष्ट शब्दों के ? आदि पक्ष में जो शब्द लौकिक हैं, वे ही वैदिक हैं । अतः आप अल्प हो यह कहते हैं कि वेद ही अपौरुषेय हैं । अपितु समस्त शास्त्रों की अपौरुषेयता कहना चाहिए। यदि विशिष्ट अनुक्रम से आए शब्द हो अनादि कहे जाते हैं तो उनमें से अवगत शब्दों
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