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प्रमेवरत्नमालायां
बालव्युत्पत्यर्थं तत्त्रयोपगम इत्यादिना शास्त्रेऽभ्युपगतमेवोदाहारणादित्रयमुप
- १०८
-दर्शयति
दृष्टान्तो द्वेधा - अन्वय- व्यतिरेकभेदात् ॥४३॥
दृष्टी अन्तो साध्यसाधनलक्षणौ धर्मों अन्वयमुखेन व्यतिरेकद्वारेण वा यत्र स - दृष्टान्त इत्यन्वर्थसञ्ज्ञाकरणात् । स द्वेधैवोपपद्यते
तत्रान्वयदृष्टान्तं दर्शयन्नाह -
साध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वयदृष्टान्तः ॥ ४४ ॥ साध्येन व्याप्तं नियतं साधनं हेतुर्यत्र दर्श्यते व्याप्तिपूर्वक तयेति भावः । द्वितीय भेदमुपदर्शयति
साध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः ॥ ४५ ॥ असति असद्भावो व्यतिरेकः । तत्प्रधानो दृष्टान्तो व्यतिरेकदृष्टान्तः ।
है; क्योंकि वाद में तो व्युत्पन्न पुरुषों का ही अधिकार होता है ।
बाल व्युत्पत्ति के लिए उन तीनों को स्वीकार किया गया है, अतः शास्त्र में स्वीकृत उदाहरणादिक तीनों अवयवों का स्वरूप दिखलाते हैंसुत्रार्थ -- दृष्टान्त दो प्रकार का है-अन्वय दृष्टान्त और व्यतिरेक दृष्टान्त ॥ ४३ ॥
जहाँ पर साध्य साधन लक्षण वाले दो धर्मं अन्वय या व्यतिरेक रूप से देखे जाँ, वह दृष्टान्त है, इस प्रकार की अर्थ का अनुसरण करने - वाली संज्ञा जानना चाहिए। वह दृष्टान्त दो प्रकार का ही युक्त है ।
अन्वय दृष्टान्त को दिखलाते हुए कहते हैं
सूत्रार्थ - साध्य के साथ जहाँ साधन की व्याप्ति दिखाई जाती है, - वह अन्वय दृष्टान्त है ॥ ४४ ॥
( जन्य, जनकादि भाव रूप ) साध्य से व्याप्त अविनाभाव से निश्चित साधन व्याप्ति पूर्वक जहाँ दिखलाया जाता है, यह भाव है । ( धूम और जल की व्याप्ति नहीं है; क्योंकि वहाँ जन्य, जनक भाव नहीं है ) ।
दूसरे भेद को दिखलाते हैं
सूत्रार्थ - साध्य के अभाव में जहाँ साधन का अभाव कहा जाता है, वह व्यतिरेक दृष्टान्त है ।। ४५ ।।
साध्य के अभाव में साधन का अभाव व्यतिरेक है । व्यतिरेक प्रधान
१. हेतुसत्त्वे साध्यसत्त्वमन्वयः ।
२. साध्याभावे हेत्वभावो व्यतिरेकः ।
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