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तृतीयः समुद्देशः तत्र सन्दिग्धं स्थाणुर्वा पुरुषो वेत्यनवधारणेनोभयकोटिपरामशिसंशयाकलितं वस्तु उच्यते । विपर्यस्तं तु विपरीतावभासिविपर्ययज्ञानविषयभूतं रजतादिः । अव्युत्पन्नं तु नामजातिसंख्यादिविशेषापरिज्ञानेनानिर्णीतविषयानव्यवसायग्राह्यम् । एषां साध्यत्वप्रतिपादनार्थमसिद्धपदोपादानमित्यर्थः ।
अधुनेष्टाबाधितविशेषणद्व यस्य साफल्यं दर्शयन्नाहअनिष्टाध्यक्षादिबाधितयोः साध्यत्वं मा भूदितीष्टाबाधित
वचनम् ॥ १८ ॥ अनिष्टो मीमांसकस्यानित्यः शब्दः, प्रत्यक्षादिबाधितश्चाश्रावणत्वादिः । आदिशब्देनानुमानागम-लोक स्ववचनबाधितानां ग्रहणम् । तदुदाहरणं चाकिञ्चि
यह ठूठ है, या पुरुष है, इस प्रकार कुछ भी निश्चय न होने से उभयकोटि का परामर्श करने वालो संशय से युक्त वस्तु संदिग्ध कहलाती है। विपरीत वस्तु का निश्चय करने वाले विपर्यय ज्ञान के विषयभूत ( सीप में ) चाँदो आदि पदार्थ विपर्यस्त हैं। अव्युत्पन्न से नाम, जाति, संख्या आदि का विशेष परिज्ञान न होने से अनिर्णीत विषय वाले अनध्यवसाय ज्ञान से ग्राह्य पदार्थ को अपुत्पन्न कहते हैं। सन्दिग्धादि के साध्यत्व के प्रतिपादन करने के लिए असिद्ध पद का ग्रहण किया है।
अब इष्ट और अबाधित दो विशेषणों की सफलता को दिखलाते हुए कहते हैं
सूत्रार्थ-अनिष्ट और प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित पदार्थों के साध्यपना न माना जाय, इसलिए इष्ट और अबाधित दो विशेषणों का ग्रहण किया है ।। १८ ॥
मीमांसक के लिए शब्द को अनित्य कहना अनिष्ट है। शब्द को अश्रावण कहना प्रत्यक्षादि से बाधित है। आदि शब्द से अनुमान बाधित ( शब्द अपरिणामी है; क्योंकि वह कृतक है, घट के समान ), आगम बाधित (धर्म परलोक में सुखप्रद नहीं है; क्योंकि पुरुष के आश्रित है, अधर्म के समान ), लोक बाधित ( मनुष्य का शिरःकपाल पवित्र है। क्योंकि वह प्राणी का अंग है, शंख और सीप के समान), स्ववचन बाधित ( मेरी माता वन्ध्या है; क्योंकि पुरुष का संयोग होने पर गर्भ धारण नहीं. करती है, जैसे प्रसिद्ध वन्ध्या ) का ग्रहण होता है। इनके उदाहरण
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