________________
तृतीयः समुद्देशः
८७
उदाहरणमाह
यथाग्नावेव धूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ॥ ९ ॥ इदानीमनुमान क्रमायातमिति तल्लक्षणमाह
साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानम् ॥ १० ॥ साधनस्य लक्षणमाह
साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः ॥ ११ ॥ ननु त्रैरूप्यमेव हेतोर्लक्षणम्; तस्मिन् सत्येव हेतोरसिद्धादिदोषपरिहारोपपत्तेः । तथा हि-पक्षधर्मत्वमसिद्धत्वव्यवच्छेदार्थमभिधीयते । सपक्षे सत्त्वं
व्याप्ति ज्ञान रूप तर्क का उदाहरण कहते हैं
सूत्रार्थ-जैसे अग्नि में ही धूम है। अग्नि के अभाव में धूम नहीं होता है ।। ९॥
इस समय अनुमान क्रमप्राप्त है, अतः उसके लक्षण को कहते हैंसूत्रार्थ-साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं ।। १० ॥
विशेष-'प्रमाणात् विज्ञानं अनुमान' अर्थात् प्रमाण से जो ज्ञान होता है, उसे अनुमान कहते हैं, इतना मात्र लक्षण मानने पर अनुमेय आगमादि से व्यभिचार आता है। अतः उसके निवारण के लिए साध्य का विज्ञान अनुमान है, ऐसा कहा है। तथापि प्रत्यक्ष से व्यभिचार आता है, अतः उसके निवारण के लिए साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहा है।
साधन का लक्षण कहते हैं
सूत्रार्थ-साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध होने के कारण हेतु निश्चित होता है । अर्थात् जो साध्य के बिना न हो उसे साधन कहते हैं ।। ११ ।।
बौद्ध-(पक्षधर्मत्व, सपक्ष सत्त्व और विपक्ष से व्यावृत्ति रूप ) त्रैरूप ही हेतु का लक्षण हो। त्रैरूप्य के होने पर ही हेतु के असिद्ध, विरुद्ध और अनैकान्तिक दोषों का परिहार हो सकता है। पक्षधर्मत्व असिद्ध के निराकरण के लिए कहा जाता है। ( शब्द अनित्य है, चाक्षुष होने से, यहाँ पक्ष धर्मत्व नहीं है। चाक्षुष होने से, यह हेतु पक्ष भूत शब्द में वर्तमान न होने से, यह हेतु असिद्ध है। इस असिद्ध हेतु के निवारण के लिए पक्ष में होना, यह कहा है)। सपक्ष में होना विरुद्ध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org