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द्वितीयः समुद्देशः क्रोडावशात्प्रवृत्तौ न प्रभुत्वम्; क्रीडोपायव्यपेक्षणाद् बालकवत् । क्रीडोपायस्य तत्साध्यस्य च युगपदुत्पत्तिप्रसङ्गश्च । सति समर्थे कारणे कार्यस्यावश्यम्भावात; अन्यथा क्रमेणापि सा ततो न स्यात् । अथ स्वभावादसौ जगन्निमिनोति; यथाऽग्निदहति, वायुर्वातीति मतम्; तदपि बालभाषितमेव, पूर्वोक्तदोषानिवृत्तेः । तथाहिक्रमवतिविवर्तजातमखिलमपि युगपदुत्पद्यत; अपेक्षणीयस्य सहकारिणोऽपि तत्साध्यत्वेन यौगपद्यसम्भवात् । उदाहरणवैषम्यं च; वन्ह्यादेः कादाचित्कस्वहेतुजनितस्य नियतशक्त्यात्मकत्वोपपत्तेरन्यत्र नित्य-व्यापि-समर्थकस्वभावकारणजन्यत्वेन देशकालप्रतिनियमस्य कार्ये दुरुपपादात् ।।
तदेवं ब्रह्मणोऽसिद्धौ वेदानां तत्सुप्त-प्रबुद्धावस्थात्वप्रतिपादनं परमपुरुषास्य
क्रीड़ा के वश जगत् के निर्माण में प्रवृत्त होता है, ऐसा मानने पर उसके प्रभुता नहीं रहती है, जैसे क्रीड़ा के उपायों की अपेक्षा रखने वाला बालक । क्रीडा का उपाय-जगत् की रचना और क्रीडा के साध्यरूप सुख की एक साथ उत्पत्ति का भी प्रसंग आता है। समर्थ कारण के होने पर कार्य अवश्य होता है, नहीं तो ( अर्थात् समर्थ कारण के अभाव में ) क्रम से भी वह उत्पत्ति उस ब्रह्म रूप कारण से नहीं होगी। जिसकी एक साथ उत्पन्न करने की शक्ति नहीं है, वह कारण क्रम से भी उत्पत्ति नहीं करता है। क्योंकि शक्ति होने पर भी सामर्थ्य का अभाव है। यदि उत्पन्न करता है तो वहाँ पर शक्ति समर्थ कारण है। यदि वह ब्रह्मा स्वभाव से जगत् का निर्माण करता है, जैसे अग्नि जलाती है, वाय बहती है, ऐसा माना गया है तो ऐसा कहना भी बालक के वचन के समान है; क्योंकि पूर्वोक्त दोषों की निवृत्ति नहीं होती है। इसी बात को स्पष्ट करते हैं-समस्त हो क्रमवर्ती विवर्तों का समूह युगपत् ही उत्पन्न होना चाहिए; क्योंकि अपेक्षणीय सहकारी कारण भी तत्साध्य है अर्थात् ब्रह्मा के द्वारा ही करने योग्य है, अतः सब विवों का युगपत् होना सम्भव है। ___ "अग्नि जलाती है', इत्यादि उदाहरण भी विषम है; क्योंकि अग्नि आदि कादाचित्क स्वहेतु जनित हैं अर्थात् ईंधन आदि मिल जाय तो जले, न मिले तो न जले। अग्नि की दहनादि की शक्ति प्रतिनियत है, परम ब्रह्म में नित्यपना, सर्वव्यापकपना और सब कार्यों के करने में समर्थ एक स्वभाव रूप कारण से उत्पन्न करने की योग्यता सब जगह और सब समय पायी जाती है। इस प्रकार देश तथा काल का प्रतिनियम सष्टि रूप कार्य में घटित नहीं होता।
इस प्रकार ब्रह्म की सिद्धि न होने पर वेदों का, उसको सुप्त, प्रबुद्ध
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