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प्रमेयरत्नमालायां म्प्रति भागासिद्धत्वं तदवस्थमेवेति नाभूत्वाभावित्वं विचारं सहते । ___ नाप्यक्रियादर्शिनोऽपि कृतबुद्धा त्पादकत्वम्; तद्धि कृतसमयस्थादकृतसमयस्य वा भवेत् ? कृतममयस्य चेद् गगनादेरपि बुद्धिमद्धेतुकत्वं स्यात् ; तत्रापि खननोत्सेचनात् कृतमिति गृहीतसंकेतस्य कृतबुद्धिसम्भवात् । सा मिथ्येति चेद्भवदीयापि किं न स्यात्; बाधासद्भावस्य प्रतिप्रमाणविरोधस्य चान्यत्रापि समानत्वात् , प्रत्यक्षेणोभयत्रापि कर्तुरग्रहणात् । क्षित्यादिकं बुद्धिमद्धतुकं न भवति; अस्मदाद्यनवग्राह्यपरिमाणाधारत्वाद् गगनादिवदिति प्रमाणस्य साधारणत्वात् । तन्न कृतसमयस्य कृतबुद्धयुत्पादकत्वम् । नाप्यकृतसमयस्य; असिद्धत्वादविप्रतिपत्तिप्रसङ्गाच्च । सन्निवेश कुछ भी वस्तु सिद्ध नहीं होता है। यदि रचना विशेष मानें तो जैनों के प्रति भागासिद्धता पूर्ववत् हो जायगी ( क्योंकि महीधरादि की आदि है, क्योंकि वे घट के समान सावयव हैं, यहाँ चूंकि सुखादि रचनाविशेष नहीं है, अतः भागासिद्धपना है )। इस प्रकार अभूत्वाभावित्व विचार को नहीं सहता है अर्थात् विचार करने पर ठीक नहीं ठहरता है।
कार्य को नहीं मानने वाले अक्रियादर्शी के यहाँ भी कृतबुद्ध्युत्पादकत्वलक्षण कार्यपना भी पृथिवी आदि के बुद्धिमन्निमित्तकत्व रूप साध्य की सिद्धि करने में समर्थ नहीं है। कृत बुद्धि सङ्केत ग्रहण करने वाली के होगी या जिसने सङ्केत ग्रहण नहीं किया है, उसके होगी। यदि सङ्केत ग्रहण करने वाले के होगी तो आकाशादि भो बुद्धिमान् द्वारा किए गए सिद्ध होंगे; क्योंकि मिट्टी के खोदने और निकालने से यह गड्ढा हमने बनाया, इस प्रकार के सङ्कत को ग्रहण करने वाले के कृतबुद्धि का होना सम्भव है। गगनादि में जो कृतबुद्धि है, वह यदि मिथ्या है तो आपके भी शरीरादि में जो कृतबुद्धि है, वह भी क्यों मिथ्या नहीं होगी ? क्योंकि ( आकाश नित्य है, क्योंकि वह समवाय के समान सत् और अकारणवान् है, इस प्रकार की ) बाधा का सद्भाव और प्रति प्रमाण का विरोध तो तनुकरणादिक में भी समान है। अर्थात् यदि आप कहते हैं कि आकाश आदि में यदि कृतबुद्ध्युत्पादकत्व का बाधक प्रमाण है तो वह बाधक प्रमाण अन्यत्र तनु आदि में भो है ही; क्योंकि प्रत्यक्ष से दोनों जगह कर्ता का ग्रहण नहीं होता है। पृथ्वी आदि बुद्धिमन्निमित्तक नहीं हैं। क्योंकि हमारे जैसे लोगों के द्वारा उसका परिमाण और आधार ग्रहण नहीं होता है। जैसे आकाश आदि इस प्रकार का प्रमाण दोनों जगह साधारण है। अतः जिसने संकेत ग्रहण किया है, ऐसे पुरुष के कृतबुद्धि का उत्पादकपना नहीं बनता है और जिसने संकेत ग्रहण नहीं किया है,
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