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परमार अभिलेख
अयक का समीकरण सरल नहीं है। उत्तर कुलदेश, जिसके अन्तर्गत पौंड्रिक ग्राम से एक ब्राह्मण (क्र. ९) आया था, निश्चित ही गंगा के उत्तर में कोई भूभाग रहा होगा । श्रवणभद्र, जो दो ब्राह्मणों (क्र. १३ व २६) का मूल निवास स्थल कहा गया है, का उल्लेख भोज देव के तिलकवाडा दानपत्र अभिलेख में भी प्राप्त होता है। यह स्थान उत्तरी भारत में कनौज के पास ही होना चाहिये क्योंकि उक्त अभिलेख के सुरादित्य का कुटुम्ब “कन्नौज से निकला" लिखा मिलता है। कल्चुरि नरेश रत्नदेव तृतीय के सरखो ताम्रपत्र अभिलेख में ( एपि. इं., भाग २२, पृष्ठ १५९ व आगे) इसका नाम 'मध्यदेश में सोणभद्र' लिखा है जो वत्सवंशीय ब्राह्मणों की एक शाखा का मूल स्थान कहा गया है। खेटक (क्र. १७) गुजरात राज्य का खेडा जिला है। लाट देश में नंदिपुर (क्र. २५) नर्मदा नदी पर स्थित आधुनिक नान्दोद है। खंडापालिका व खडुपल्लिका (क्र. १६ व ८) तो खेडावाल अथवा खेडौलिया के समान ही एक स्थान का नाम है जो संभवतः खेडावाल ब्राह्मणों का मूल निवास स्थान था। अन्य नाम खजूरिका, सोपुर, दपुर, अविवा व राजकीय ग्राम प्रायः मालव राज्य के अन्तर्गत अथवा इसके आस पास ही स्थित थे। वैसे खजुरिया नाम उज्जैन के आसपास बहुत प्रचलित है। मधुपालिका संभवतः मझौली के समान ही है जो ग्राम-नाम रूप से उत्तर प्रदेश में काफी प्रचलित है। इस प्रकार ब्राह्मणों के मूल निवास स्थानों के बारे में प्रस्तुत अभिलेख में पर्याप्त सूचना है जो स्वयं में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। गणना करने पर यह तथ्य सामने आता है कि ब्राह्मणों का सर्वाधिक आगमन बंगाल से हुआ था, इसके पश्चात अन्य प्रदेशों जैसे उत्तर प्रदेश, गुजरात आदि का स्थान है।
यह निर्धारण करना सरल नहीं है कि नरेश द्वारा भूदान देने और ताम्रपत्र लिखवा कर दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मण को प्रदान करने में नौ मास का अन्तर क्यों है। संभव है कि नरेश इस अवधि में आसपास प्रदेशों पर विजय करने अथवा आक्रमणकारी शत्रु से युद्ध करने में व्यस्त रहा हो । अभिलेख में इस अन्तर का कोई कारण नहीं दिया गया है।
___ अभिलेख में उल्लिखित हूणमंडल से तात्पर्य उत्तरी मालवा में हूणों के अधीन प्रदेश से है। प्रतीत होता है कि इस युग में हूणों द्वारा प्रशासित अनेक क्षेत्र थे। पद्मगुप्त रचित नवसाहसांक चरित (सर्ग ११, श्लोक क्र. ९०) व अनेक परमार अभिलेखों में सीयक द्वितीय, वाक्पतिराजदेव द्वितीय व सिन्धुराजदेव द्वारा हूणों पर विजय प्राप्त करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। नवीं शती के मन्दसौर स्तम्भ लेख (का. इं. इं, भाग ३, पृष्ठ १५२ व आगे; डा. डी. सी. सरकार, सेलेक्ट इंस्क्रिपशन्स, भाग १, पृष्ठ ३२७, पादटिप्पणी ४) से ज्ञात होता है कि यशोधर्मन ने हूण नरेश मिहिरकुल को हराया था । उत्तरकालीन परमार नरेश उदयादित्य की तिथिरहित उदयपुर प्रशस्ति (क्र. २२) से ज्ञात होता है कि वाक्पतिराजदेव के पिता श्री सीयकदेव ने हूणों को परास्त किया था । कल्चुरि नरेश कर्ण की साम्राज्ञी आवल्लदेवी हूण नरेश की पुत्री कही गई है। अनुमान होता है कि प्रस्तुत अभिलेख का हूण मंडल संभवतः उज्जैन व मन्दसौर जिलों का मध्यवर्ती कुछ भाग रहा होगा। आवरक भोग संभवतः उज्जैन के उत्तर-पूर्व में आधुनिक आगर के पास अवार ग्राम था । इस ग्राम से प्रायः १५ मील उत्तर-पश्चिम में वेन्का नामक ग्राम है जो प्रस्तुत अभिलेख का वणिका ग्राम है।
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