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________________ गाऊनरी अभिलेख ५ पंक्ति क्रमांक ४-७ में वाक्पतिराज देव द्वितीय की वंशावली है। इसमें क्रमशः कृष्णराजदेव, वैरिसिंह व सीयकदेव के नामोल्लेख हैं जिनके साथ पूर्ण राजकीय उपाधियां “परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर" लगी हैं। वाक्पतिराजदेव का अन्य नाम अमोघवर्षदेव दिया है। जो उसका मूल नाम था। आगे उसके नाम के साथ अन्य राजकीय उपाधियां "पृथ्वीवल्लभ श्रीवल्लभ नरेन्द्रदेव” जुड़ी हैं। यहां वंश का नामोल्लेख नहीं है। वणिका ग्राम को कुल ७८ भागों में विभाजित कर २६ ब्राह्मणों को दान में दिया गया था। औसत रूप से इस प्रकार प्रत्येक ब्राह्मण को ३ भाग प्राप्त हुए थे। यद्यपि २ ब्राह्मणों को केवल एक-एक भाग और नौ को दो-दो भाग ही प्राप्त हुए। ऋग्वेदी ब्राह्मणों को विशेष सम्मान प्राप्त था। इसी कारण ऐसे चार ब्राह्मणों को कुल १९ भाग प्राप्त हुए थे। दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मणों की सूची में प्रथम नाम सर्वानन्द का है जिसको सर्वाधिक आठ भाग प्राप्त हुए थे। यह ब्राह्मण मगधदेश के अन्तर्गत कणोपाभद्र ग्राम से देशान्तर-गमन करके मालव देश में आया था। यह स्थान बिहार राज्य के पटना संभाग में शाहबाद जिले में स्थित केन्या अथवा केन्वा ग्राम होना चाहिये। सर्वाधिक महत्वपूर्ण व रोचक सूचना यह प्राप्त होती है कि उस काल में भारत के विभिन्न प्रदेशों से विद्वान ब्राह्मण देशान्तर-गमन करके मालव राज्य में आये और यहां पर शासनकर्ता परमार राजवंशीय नरेशों द्वारा उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर विभिन्न पारितोषकों व भूदानों द्वारा विभूषित किये गये। यह देशान्तर-गमन अधिकतर बंगाल देश से हआ जहां विभिन्न वेदों में पारंगत ब्राह्मण बहुसंख्या में विद्यमान थे। यहां तक कि उत्तर-काल में यह किंवदन्ति प्रचलित हो गई कि बारहवीं शती में बंगाल में विद्वान ब्राह्मण ही शेष नहीं रह गये। इसीके अनुरूप दोनाक नामक ब्राह्मण (क्रमांक ७) दक्षिणी राढ़ के अन्तर्गत विल्वगवास से देशान्तरगमन कर के मालव राज्य में आया था व उसको पांच भाग भूमि प्राप्त हुई थी। शावर (क्र. ५) नामक ब्राह्मण कुलाञ्चा से आया था। यह स्थान कोलांच अथवा क्रोडञ्च नामक ब्राह्मणों के एक मूल स्थान के समान ही है जो असम, उत्तरी बिहार और उड़ीसा के राज्यों में भूदान प्राप्त करते थे। यह स्थान संभवतः उत्तरी बंगाल के बोगरा जिले में कुलञ्च ही है। एक अन्य स्थान शावथिका देश है जिसकी समता बंगाल में उत्तरी बोगरा व दक्षिणी दिनाजपुर जिलों के भूभाग से संभव है। आसाम के एक नरेश इन्द्रपाल के एक अभिलेख में सावथि व उसके अन्तर्गत वैग्राम नामक स्थान का उल्लेख मिलता है (कामरूप शासनावली, पृष्ठ १३७)। बोगरा जिले के उत्तर पश्चिमी भाग में वैग्राम स्थान पर एक गुप्तकालीन ताम्रपत्र अभिलेख प्राप्त हुआ है जिसमें उसका नाम वायिग्राम लिखा है। अतः सावथि देश अथवा श्रावस्ति में वोगरा जिले का उत्तरी भाग सम्मिलित था। प्रस्तुत अभिलेख में इस भूभाग में दो ग्रामों दुर्दरिका और मितिल पाटक के उल्लेख हैं, जिनका समीकरण क्रमशः वोगरा जिले में पंचवीवी थाने के अन्तर्गत दद्र ग्राम, मितैल अथवा मितैलपारा से किया जा सकता है। बंगाल से देशान्तर-गमन करके मालव राज्य में आने वाले ब्राह्मण अधिकतर सामवेद की छान्दोग्य शाखा के थे। यह इस कारण भी महत्वपूर्ण है कि बंगाल में उत्तरकाल में भी सामवेद की इसी शाखा के ब्राह्मणों की प्रधानता रही है। मध्यदेश, जो मोटे रूप से आधुनिक उत्तर प्रदेश के बराबर था, कम से कम तीन दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मणों का मूल निवास था। परन्तु उसके अन्तर्गत उल्लिखित यक या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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