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(२)
हरसोल का सीयक द्वितीय का ताम्रपत्र 'ब'
( संवत् १००५ == ९४९ ईस्वी)
प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर खुदा हुआ है । ये ताम्रपत्र पूर्ववर्णित ताम्रपत्रों के साथ ही प्राप्त हुए थे । ताम्रपत्र चौकोर हैं जो आकार में २० सें. मी. लम्बे व १३ सें. मी. चौड़े हैं । अभिलेख कुल २९ पंक्तियों का है-- प्रथम ताम्रपत्र पर १३ व दूसरे पर १६ पंक्तियां खुदी हैं । इन पर गरुड़ का राजचिह्न नहीं है जो संभवतः इस कारण है कि पूर्ववर्णित ताम्रपत्र एवं प्रस्तुत ताम्रपत्र उसी नरेश द्वारा एक ही दिन दो विभिन्न ब्राह्मणों को, जो पिता-पुत्र रूप से संबंधित थे, को दान स्वरूप दिये गये थे ।
प्रस्तुत अभिलेख के लेखक व खोदने वाले का कार्य, पूर्ववर्णित अभिलेख के समान, प्रशंसनीय नहीं है। अक्षरों की बनावट बहुत साधारण है । पंक्तियां भी सीधी नहीं हैं । दूसरे ताम्रपत्र पर शुरू के अक्षर बड़े हैं परन्तु बाद में छोटे होते चले गये हैं। अंतिम ५-६ पंक्तियों में तो अक्षर बहुत पास-पास खोदे गये हैं, यहां तक कि लेख का अंतिम भाग दाहिनी ओर के खाली स्थान पर खड़ी पंक्ति के रूप में खोदना पड़ा ।
अभिलेख का प्रमुख ध्येय पंक्ति क्रमांक १५ व आगे में वर्णित है । इसमें लिखा है कि श्री सीयक ने योगराज के ऊपर (आक्रमण की) यात्रा कर व अपने कार्य में सिद्धि प्राप्त कर महीनदी के तट पर ठहरे हुए चन्द्र व सूर्य के योगपर्व के अवसर पर भगवान शिव की अर्चना कर खेटक मंडल के अधिपति की प्रार्थना पर ( पंक्ति ९ ) अपने अधीन मोहडवासक विषय के अन्तर्गत सहिका ग्राम ( पंक्ति १३) दान में दिया ।
दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मण आनन्दपुरी नगरी का वासी, त्रिऋषि गोपाली गोत्री, लल्लोपाध्याय का पुत्र नीना दीक्षित था । सहिका ग्राम का समीकरण गुजरात राज्य में अहमदाबाद जिले के प्रांतीज तालुका के अन्तर्गत मोडासा से ८ मील दक्षिण में स्थित सीका नामक ग्राम से किया जा सकता है ।
पूर्ववर्णित अभिलेख के समान होने से इसका हिन्दी अनुवाद नहीं दिया जा रहा है, केवल मूल पाठ ही है ।
१. ओं ।
परमार अभिलेख
३.
संरंभास्सु
परमभट्टारक- महाराजाधिराज परमेश्वर श्री
मूल पाठ (प्रथम ताम्रपत्र)
विद्युक्च (च्च) क्रकडार केसर सटाभिनाम्वु (बु) द श्रेणयः शोणं नेत्रहुताशडम्व (ब) र भृतः सिंघा (हा ) -
कृते : शाङ्गिणः ।
विस्फूर्ज्जद्गलगज्जतज्जितककुन्मातङ्गदर्पोदयाः
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खयन्तु वः खरनखक्षुन्तद्विषद्वक्षसः ।। [१ ॥ ]
४. मद् अमोघवर्षदेव-पादानुध्यात- परमभट्टारक- महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीमद् अका५. लवर्षदेव- पृथ्वीवल्लभ श्रीवल्लभ-नरेन्द्रपादानां
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