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________________ धरमपुरी अभिलेख ६७... नवम ईश्वर देव, दशम पार्चतीप्रिय, एकादश रुद्र तथा द्वादश शिव ६८.. इन द्वादश नामों का जो पठन करेगा वह गोहत्या करने वाला, उपकार को न मानने वाला ब्रह्महत्या करने वाला, गुरुपत्नि गमन करने वाला ६९. स्त्री हत्या, बाल हत्या करने वाला, मदिरापान करने वाला, शूद्रीपति, ये सब प्रकार के पापी सब पापों से मुक्त होकर रुद्रलोक को जाते हैं। ७०. अविमुक्तेश्वर, केदारेश्वर, ओंकारेश्वर, अमरेश्वर तथा महाकालेश्वर ये पांच लिंग (शिवरूप में) वर्णित किये हैं । ७१. हे भगवन्, अज्ञान या ज्ञान से जो विरुद्ध आचरण हो गया हो, पशुरूप उन सारे दोषों को क्षमा करें, आप सारे कारणों के स्वामी हैं। ५१. स्वस्ति । श्री भोजनगर में श्री सोमेश्वरदेव मठ में निवास करने वाले, नंदियड ग्राम से आये हुए प्रणाम गोत्री, नियम-संयमी, स्वाध्याय, ध्यान-अनुष्ठान रत, परम शैव आचार्य भट्टारक श्री भववाल्मीक, श्री अमरेश्वर देव त्रैलोक्याधिपति के ध्यान से पुण्य संचित करने वाले, इच्छित से अधिक दान देने में रत त्रिकाल संध्या व ५२. समाधि करने में गुरु परम्परा के विधान से युक्त श्री अमरेश्वर देव के चरण कमलों पर भ्रमरों के रूप में मंडराने के लिए लम्बे मार्ग चल कर आये हुए, थके हुए तपस्वियों के संताप को (दूर करने वाले) ५३. श्री अमरेश्वर देव के दर्शन हेतु सदा मूर्ति के समीप निवास करने वाला भट्टारक श्री भावसमुद्र। पांडित्य में ब्रह्मदेव के समान शिव को प्रणाम करता है। ५४. ओं. स्वस्ति । श्री अमरेश्वर देव के मंदिर में बैलोक्य में विख्यात स्थान में देव व दानवों में दुर्जय देवगुरु की सेवा में संलग्न परमभट्टारक श्री ५५. सुपूजित राशि, उसका शिष्य विवेक राशि। फिर उसका शिष्य चपलगोत्र से आया हुआ, सहज भक्ति वाला, शांति श्री मूर्ति ५६. पंडित गंधध्वज ने परमभक्ति से यह महिमायुक्त हलायुध स्तुति अपने हेतु स्वयं लिखी है ।। संवत् ११२० कार्तिक वदि १३ ।। महाश्रीः मंगलकारी हो ।। धरमपुरी से प्राप्त प्रस्तर खण्ड अभिलेख (तिथिरहित व खंडित) प्रस्तुत अभिलेख एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है जिसका पाठ १९४४ ई. में छपी पुस्तिका परमार इंस्क्रिप्शनस् इन धार स्टेट, पृष्ठ ८८ पर दिया हुआ है । अभिलेख की प्राप्ति का विवरण, स्थिति, आकार, अक्षरों की बनावट आदि के संबंध में कुछ भी ज्ञात नहीं है । प्रस्तर खण्ड वर्तमान में अज्ञात है। पाठ १० पंक्तियों का है परन्तु एक भी पंक्ति पूरी नहीं है। यह भी निश्चित नहीं है कि पाठ गद्यमय है अथवा पद्यमय है। . . अभिलेख की पंक्ति ३ में नरेश आहवमल्लदेव का उल्लेख है, परन्तु उसका संदर्भ अनिश्चित् है। आहवमल्ल पश्चिमी चालुक्य नरेश इलिववेडंग सत्याश्रय का अन्य नाम था। वह तैलप द्वितीय का पुत्र व उत्तराधिकारी था। उसने ९९५ ई. में अपने पिता के साथ परमार वाक्पति द्वितीय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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