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________________ ३१६ परमार अभिलेख __ अभिलेख की जर्जर स्थिति के कारण दानकर्ता, दान प्राप्त कर्ता एवं दिए गए दान का विवरण ठीक से पढ़ने में कठिनाई है। फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि दान प्राप्तकर्ता कोई एक विशिष्ट ऋषि था जिसके चरणयुगल को भक्तिपूर्वक धोने के बाद उसको दान दिया गया था। भौगोलिक स्थानों में उदयपुर अभिलेख का प्राप्ति स्थल ही है। हथिकपावा ग्राम उदयपुर के पास ही कोई ग्राम रहा होगा जिसका वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं है। (मूलपाठ) १. [संवत्] १३६६ श्रावण वदि १२ [शुक्र २. उदयपुरे समस्त राजावली ३. महाराजाधिराज श्री जय४. सिंघे (ह) देव राज्ये हथिक [पा]५. वा ग्राम अष्टां सं (शं) ६. विद्यादरेणात्रा. . .सूणजे.. ७. कृते पादौ प्रक्षालित्त्वा त्रद... ८. कैः प्रदत्तं..... ९. श्री....... (अनुवाद) .१.. संवत् १३६६ श्रावण वदि १२ शुक्रवार को २. उदयपुर में सभी नरेशों (के साथ) . ३. महाराजाधिराज श्री जय४. सिंह देव के राज्य में हथिकपा५., वा ग्राम (में) आठ... . ६. विद्यादरेण यहां (?). . . सूणज के लिये (?). . ७. कर के पावों को धोकर. . . ८. ..दिया गया . . . . . ९. श्री. . ... . . . . . . (७८) ..... मांडू से प्राप्त सरस्वती स्तुतियुक्त प्रस्तर खण्ड अभिलेख प्रस्तुत सरस्वती स्तुति दो प्रस्तर खण्डों पर उत्कीर्ण है जो किसी बड़े खण्ड के भाग हैं। इसका उल्लेख ए. भं. ओ.रि.ई., भाग ८, १९२६-२७, पृष्ठ १४२-४४ पर है । प्रस्तर खण्ड वर्तमान में अज्ञात है। ... प्रस्तर खण्डों के आकार, अभिलेख की स्थिति, अक्षरों की स्थिति आदि के संबंध में कुछ भी ज्ञात नहीं है। अक्षरों की बनावट ११वीं-१२वीं सदी की नागरी लिपि है। भाषा संस्कृत है व लेख पद्यमय है। परन्तु भग्नावस्था में होने के कारण कोई भी श्लोक पूर्ण नहीं है। . अभिलेख सरस्वती स्तुति रूप है। इस छोटे से खण्ड में सरस्वती का उल्लेख छ: बार आया है। पंक्ति १२ में वाल्मीकि, व्यास आदि महान कवियों के उल्लेख हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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