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परमार अभिलेख
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" उसने अत्यन्त उन्नत ओंकारदेव का मंदिर बनवाया जो जम्बुकेश्वर नामक शिव का अनुपम मंदिर है ।।६५।। ....."
मंडपदुर्ग के मध्य में जिसके द्वारा बनवाये गये हुए सरोवर में प्रत्येक रात्रि प्रतिबिम्बित होने वाले ज्योतिर्मय तारारूप अगस्त्य मुनि मधुर जलपान करता हुआ मानो खारीसमुद्र के जलपान के दुख को निवारण कर रहा हो ।।६६॥
जिसने मंडपदुर्ग में विशाल परकोटा, राजमार्ग सहित सोलह सुवर्णकुम्भ कलश वाले उन्नत विशाल सभाकक्षयुक्त मंदिरों का निर्माण कर, विशाल देवमंदिरों के आगे जलकुण्ड " से युक्त नगरी निर्माण करके राजाज्ञा से ब्राह्मणों को वितरित की तथा वैसी ही अनुपम
रचना से मान्धातृ दुर्ग को भी (सुसज्जित किया) ॥६७।। ८६. वह पूर्वोक्त राजावलि से विराजमान होकर ।' ८७. भक्ति आदि से प्रसादित धारा नरेश श्री जयवर्मन् द्वारा आज्ञापित साधनिक अनयसिंहदेव धर्मबुद्धि में
.... ८८. विजयशील वर्द्धनापुर प्रतिजागरणक में कुम्भदाउद ग्राम में तथा उसी प्रकार वालोद
'ग्राम में तथा संप्ताशीति ८९. प्रतिजागरणक में वधाडिग्राम में तथा नागद्रह प्रतिजागरणक में नाटिया ग्राम में सभी
राजपुरुषों . . . . . . . . . . . (तीसरा ताम्रपत्र-पृष्ठ भाग) . . ९०. श्रेष्ठ ब्राह्मणों, आस पास के निवासियों, पटेलों और ग्रामीणों को आज्ञा देते हैं कि
आपको विदित हो कि मंडपदुर्ग में ठहरे हए ९१. हमारे द्वारा तेरह सौ इकत्तीस प्रमाथि नामक संवत्सर में भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष में ९२. सातवीं तिथि शुक्रवार को मैत्री नक्षत्र में स्नान कर भगवान पार्वतीपति की विधिपूर्वक -अर्चना कर, संसार की असारता देख कर, तथा . . . . ... ___ इस पृथ्वी का आधिपत्य चंचल वायु से नष्ट होने वाले बादलों के समान क्षणभंगुर है, विषयभोग प्रारम्भमात्र में ही मधुर लगने वाला है, मानव प्राण तिनके के अग्रभाग
पर ठहरे जलबिन्दु के समान क्षणभंगुर है, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा है ।।६।। ९४. इस सब पर विचार कर, अदृष्ट फल को स्वीकार कर और अपने पुत्रों कमलसिंह
धारासिंह जैलसिंह '९५. पद्मसिंह इन सभी सहित, विभिन्न गोत्रों, विभिन्न नामों वाले मांधाता ब्रह्मपुरी में निवास
करने वाले ब्राह्मणों के लिये .. .. .... ९६. जैसे टकारी स्थान से निकलकर आये गौतमगोत्री आंगिरस औवथ्य' गौतम तीन प्रवरी
ऋग्वेद शाखा के ९७. अध्यायी चतुर्वेदी कमलाधर शर्मा के पौत्र अवस्थिन् विद्याधर शर्मा के पुत्र दीक्षित पद्मनाभ
शर्मा ब्राह्मण के लिये १९८. एक १ पद टकारी स्थान से निकलकर आये गौतम गोत्री आंगिरस औवथ्य गौतम
तीन प्रवरी ऋग्वेद ९९. शाखा के अध्यायी चतुर्वेदी कमलाधर शर्मा के पौत्र अवस्थिन् विद्याधर शर्मा के पुत्र
चतुर्वेदी ‘माधव शर्मा ब्राह्मण
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