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परमार अभिलेख
वेद जिस का मुख, वेदांग जिसके अंग, पुराण जिसके व्यक्त होने वाले अवयव, वक्रोक्ति कवित्व जिसके केश, व्याकरण शास्त्र जिसके चरण, न्यायशास्त्र जिसकी आत्मा, मीमांसा शास्त्र जिसका मन है ऐसा नूतन शरीर धारण करने वाला यह ब्रह्मदेव है, इस भ्रांति को ( वह ) दूर करे ।।११।।
विष्णु की नाभि से स्वयं प्रकट हो कर ब्रह्मा ने इस जगत का निर्माण किया। बाद में कुछ तो भी प्रधानता से अन्य निर्माण किये। अपने मन से सात मान्य ऋषियों को उत्पन्न किया। उनमें से वसिष्ठ तप करने हेतु दृढ़ निश्चय हुए ।।१२।।
सौ पुत्रों के वध होने पर भी जिसने क्रोध नहीं किया, तब उसके तप को देखने की विश्वामित्र ने इच्छा की ॥१३॥
बाद में 'शत्रुओं को मारो" ऐसा बोलने वाले उस मुनिवर ने योगबल द्वारा अग्निकुण्ड . से धर्मद्रोहियों का नाश करने के लिए जिसको उत्पन्न किया वह परमार नाम से विख्यात हुआ || १४ ॥
( दूसरा ताम्रपत्र -- अग्रभाग )
उस परमार से अखिल पृथ्वी पर श्रेष्ठ व उन्नत वंश का अलंकार रूप यह क्षत्रिय वंश उत्पन्न हुआ जिसमें कोई भी ऐसा नरेश नहीं था जिसमें विष्णु का अंश न हो, एवं शत्रु नरेशों के मनरूपी मानस सरोवर में जो हंस के समान विराजमान न हो ।। १५ ।। इस वंश में क्रम से कमंडलूधर नामक धाराधीश हुआ जिसकी कीर्ति से भूतल
प्रकाशित होने पर चन्द्र निश्चिन्त हो गया ||१६||
पिता के स्वर्गवासी होने पर अपने प्रतापों से सूर्य के समान कांतिवाला धूम्रराज नरेश हुआ ।।१७।।
जो प्रतिदिन उन्नत विरोधी नरेशों के नगरों की परम्पराओं को भस्म करता था । धुवें से त्रस्त हुए देवताओं ने उसको धूम्रराज नाम से पुकारा ।। १८ ।।
उसके उपरान्त पृथ्वी पर देवसिंहपाल नरेश हुआ जिसके प्रतापसूर्य ने शत्रुनृपति रूपी . अन्धकार को क्षणभर में नष्ट कर दिया ||१९||
अपने पिता धारातीर्थ गति (?) के स्वर्गगत होने पर उस राज्य में क्रम से कनकसिंह नरेश हुआ । “मेरे पिता स्वर्ग में कल्पवृक्ष के नीचे बैठे हैं" ऐसा सोच कर जिसने प्रसंगों पर दान दे कर कल्पवृक्ष को नीचा कर दिया ||२०||
उसके पश्चात् अत्यन्त पराक्रमशील श्री हर्ष हुआ । दान देने वाले ( ? ) जिसने वैष्णव हो कर भी सब को सुखी क्रिया ।। २१ ।।
स्वर्गाधिपति (इन्द्र) इस (श्री हर्ष) को अपने स्थापित कर भूतल पर विजय प्राप्त करने की धारण किये मालव भूखण्ड में जगद्देव के नाम से उदित हुआ || २२॥
जगद्देव द्वारा याचकों को इच्छा से अधिक दान प्रदान करने से दानवीर कर्ण का नाम कानों की कटु लगने लगा, शिवि व बलि राजा अकल्याणकारी व निस्तेज हो गये, चिन्तामणि चिन्ता हरण में असमर्थ हो गये, तथा कल्पवृक्ष व कामधेनु इच्छापूर्ति के लिए छोटे पड़ गये ||२३|
राज्य (स्वर्ग) में अपने पद के बदले इच्छायुक्त कौतुक से हाथ में खड्ग
बाद में स्थिर निश्चय वाला, युद्धों में स्थिर शरीर वाला नरेश राज्य को प्राप्त कर स्थिरकाय नाम सार्थक किया ||२४||
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हुआ, जिसने समृद्ध
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