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मान्धाता अभिलेख
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सरोवर बनवाया। श्लोक ६६ के अनुसार मंडपदुर्ग में नरेश की अनुमति प्राप्त कर ब्राम्हणों को एक उपनगरी दान में दी जिस के चारों ओर परकोटा, राजमार्ग सहित सुवर्ण कुंभकलश युक्त ऊंचे विशाल सभाकक्ष युक्त १६ मंदिरों का निर्माण करवाया गया जो जलकुण्डों से युक्त थे। यह उपनगरी संभवतः पंक्ति ९५ में उल्लिखित ब्रम्हपुरी थी। इस प्रकार के निर्माण कार्य मान्धातृ दुर्ग में भी करवाये गये।
दान में दिये गये ग्राम वर्द्धनापुर प्रतिजागरणक में कुम्भाडाउद ग्राम व वालौदा ग्राम, सप्ताशीति प्रतिजागरणक में वघाडी ग्राम एवं नागद्रह प्रतिजागरणक में नाटिया ग्राम थे।
दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मणों का विवरण संलग्न सूचि के अनुसार है। प्रत्येक ब्राह्मण, उसके पिता व पितामह के नामों के साथ उपाधि अथवा उपनाम हैं जो उसके अध्ययन या धार्मिक कृत्यों को प्रदर्शित करते हैं। यह उपनाम कभी दृढ़ न होकर परिवर्तनशील थे। यहां अनेक स्थलों पर पितामह, पिता व दानप्राप्तकर्ता ब्राह्मण की उपाधियां एक समान न होकर भिन्न-भिन्न हैं। क्रमांक १ में पितामह चतुर्वेदिन्, पिता अवस्थिन् एवं दान प्राप्तकर्ता दीक्षित हैं। इसी प्रकार कुछ अन्य भी हैं। पंक्ति १२७ में दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मणों की संख्या १६ लिखी है जबकि सूचि में केवल १४ ब्राह्मणों को एक-एक अंश दान में दिये गये। दो भाग दानकर्ता अनयसिंह ने अपने पास रख लिये । अतः संभव है कि चारों ग्रामों से १६ भाग कुल १६ ब्राह्मणों को देने का निश्चित था। परन्तु बाद में सूचि में परिवर्तन कर दिया गया। यह परिवर्तन नरेश की अनुमति से किया गया होगा। भूदान नरेश द्वारा आज्ञापित अनयसिंहदेव द्वारा अपने पुत्रों कमलसिंह, धारासिंह, जैनसिंह व पद्मसिंह सहित मंडप दुर्ग में नरेश के साथ ठहरे हुए दिया गया था ।
अनयसिंहदेव चाहमान वंशीय क्षत्रिय था। उसकी उपाधि साधनिक थी। उसके पिता व पितामह भी इसी पद को सुशोभित करते थे। अभिलेख उसी के द्वारा निस्सृत किया गया था। इससे परमार राजसभा में उसकी शक्ति व प्रतिष्ठा का आभास होता है । साधनिक का प्राकृत रूप साहणिअ अर्थात् सेनाओं का प्रमुख सेनापति होता है (आधुनिक वंश नाम साहनी से मिलान कीजिये)। अन्य स्थल पर इसका भाव मंडलाधिप अथवा सैनिक प्रान्तपति भी है।
___ अभिलेख में नरेश को धाराधिप निरूपित किया गया है (पंक्ति ८७)। परन्तु प्रतीत होता है कि अब उसने राजधानी अथवा द्वितीय राजधानी मंडपदुर्ग में परिवर्तित कर ली थी। तात्कालीन राजनीतिक स्थिति पर विचार करने से यह परिवर्तन स्पष्ट हो जाता है।
_ निर्दिष्ट भौगोलिक स्थानों में अनेक स्थान आज भी विद्यमान हैं, जैसे रेवा व कावेरी नदियां, मान्धाता, धारा, मंडपदुर्ग, भल्लस्वामिपुर (भिलासा), देवपालपुर (देपालपुर) आदि । दाक्षिणात्य संभवतः देवगिरि के यादव साम्राज्य को इंगित करता है। शाकपुर आधुनिक शुजालपुर है। वर्धनापुर वर्तमान वदनावर है। कुम्भाडाऊद ग्राम धार जिले में कडोद ग्राम है। वालौद उसी के पास वालौदा है । सप्ताशीति प्रतिजागरणक धार जिले में ८७ ग्रामों के समूह का नाम रहा होगा । नागद्रह आधुनिक नागदा है जो धार जिले में है। परन्तु अन्य सुझाव उज्जैन जिले में स्थित नागदा से समता करने का है। नाटिया ग्राम उज्जैन के पास नावटिया ग्राम है । टकारी स्थान का उल्लेख पूर्ववणित अभिलेखों में किया जा चुका है। लखणपुर संभवतः पश्चिमी निमाड़ जिले में लखनगांव है । तोलपौह अनिश्चित् है, परन्तु पश्चिमी निमाड़ जिले में टुल्या व तौलकपुर और उज्जैन जिले में तोलियाखेड़ी व तिलावर ग्रामों के नाम इससे मिलते जुलते हैं । टेणी भी अनिश्चित् है परन्तु उज्जैन जिले में टुमनी, टुमणी, तारनोद ग्रामों के नाम इससे मिलते जुलते हैं ।
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