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मान्धाता अभिलेख
इति सर्व्वं विमृश्यादि (दृ) ष्ट-फलमङ्गि (ङ्गी) कृत्य आश्रमस्थान-विनिर्गताय वाजिमाध्यंदिन
शा
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२३. खाध्यायिने पराश[र] गोत्राय पराशाशकृ ( शरशक्त) - वशिष्ठेति विप्रवराय श्रोति दामोदरपौत्राय श्रोत व ( ब्रह्मपुत्राय श्रोत्रि गंगाध -
२४. रं स ( श) र्म्मणे व्रा (ब्रा) ह्मणाय वंटकमेकं १ महावनस्थान विनिर्गताय पवित्रगोत्राय गग्ग - गौरिवीतांगिरसेति त्रिप्रवराय आश्व
२५. लायन - शाखाध्यायिने दी गंगाधर पौवाय आवश (स) थिक महादित्य-पुत्राय शुक्ल भद्रेस्व ( श्व) रस (श) र्म्मणे व्रा (ब्रा) ह्मणाय वटकमे
२६. कं १ महावनस्थान - विनिर्गताय पवित्रगोत्राय गाय गौरिवीतांगिरसेति त्रिप्रवराय आश्वलायन - शाखाध्यायिने दी शि ( सि ) ह -
२७. कण्ठ-पौत्राय शु मधुकण्ठपुत्राय शु चन्द्रकण्ठस (श) र्म्मणे व्रा (ब्रा) ह्मणाय वण्टकमेकम् १ महावनस्था[न]-विनिर्गताय औदल्यगोवाय मा
२८. ध्यंदिन - शाखाध्यायिने दी पद्मस्वामि-पौत्राय दी त्रिलोचनन्पुत्राय दी नारायणस (श) म्र्मणे व्रा (ब्रा) ह्मणाय सार्धं वष्टकमेकं १३ म
२९. हावनस्थान - विनिर्गताय कात्यायन - गोत्राय श ० ( सा ) मवेदाध्यायिने त्रि रामेस्व ( श्व) रपौत्राय त्रि जसो ( यशो ) धर-पुत्राय त्रि सू ( शू) र शर्म्मणे व्रा (ब्रा) ह्मणाय वण्टेकमे
३०.
कं १ टकारस्थान - विनिर्गताय भाद्व (र) द्वाज गोत्राय भारद्वाजाङ्गिरस -वा (बा) र्हस्पत्येति faraराय कौथुमशाखाध्यायि
३१. ने त्रि डालणपौत्राय वि आशाधर पुत्राय त्रि विस्वस्व ( श्वेश्व) र शर्म्मणे वा (ब्रा) ह्मणाय वण्टकमेकम १ टकारस्थान - विनिर्गताय भारद्वा
३२. ज-गोत्राय भारद्वाजाङ्गिरस -वा (बा) र्हस्य ( स्प ) त्येति त्रिप्रवराय माध्यंदिन शाखाध्यायिने दी केल्हणपौत्राय दी मधुपुत्राय दी रा
३३. म स (श) म्र्मणे व्रा (ब्रा) ह्मणा [य] वण्टकमेकम् १ त्रिपुरीस्थान - विनिर्गताय भारद्वाज-गोत्राय भारद्वाजाङ्गिरसवा (बा) र्हस्पत्येति त्रिप्रव
३४. राय पं हरिधरपौत्त्राय पं महीधरपुत्राय पं भृगुशर्मणे वा (ब्रा) ह्मणाय सार्द्धं वण्टकमेकम् १३ मुत (ता) वथू (थु ) स्थान-विनिर्गताय
३५. काश्यपगोत्राय काश्यपावत्सारनैध्रुवेति त्रिप्रवराय आश्वलायन - शाखाध्यायिने च पि ( पृ ) थ्वीधर - पौत्राय च आसा (शा) धर पु
३६. वाय अग्नि नारायणशर्मणे व्रा (ब्रा) ह्मणाय वण्टकमेकम् १ अकोला स्थान-विनिर्गताय पशु (सु) - गोत्राय परावशु (सु) काङकाय
३७. न-कैकशेय (सेति ) त्रिप्रवराय ठ भरतपाल पौत्राय ठ डाल्लणपुत्राय राजगोश (स) ल शर्मणे व्रा (ब्रा)ह्मणाय वण्टकमेकम १ मथुरास्था
३८. न - विनिर्गताय आश्वलायन - शाखाध्यायिने वशि (सि) ष्ठ- गोत्राय काश्यपावत्सार - वाशि (सि) ष्ठेति त्रिप्रवराय चतुर्वेद-जनार्दनपौत्रा
( द्वितीय ताम्रपत्र - पृष्ट भाग )
३९. य चतुर्वेद- धरणीधरपुत्राय महाराजपंडित - श्री गोसेशर्म्मणे ब्रा (ब्रा) ह्मणाय वण्टकद्वयं २ मथुरास्थान - विनिर्गताय आ
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