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१८.
हरसूद अभिलेख
२५१ - महाजनानुर (रा)गेण [श्रीयो मम वितन्वतां (ता)। कृता श
___स्ता प्रशस्तै (शंसे) यं धीमता देवशर्मणा ॥१४॥ शुभं भवतु लेष (ख) क पाठकयोः सव्वे (सर्व) दैव ।। शिवमस्तु ।
(अनुवाद) १. ओं। शिव को नमस्कार।
प्रत्येक कार्य के आरम्भ में देवताओं के द्वारा जो नमस्कृत किया जाता है उस पार्वतीपुत्र गणेश की मेरे द्वारा सदा स्तुति की जाती है ।।१।।
सूर्य की कांति जिस प्रकार अंधकार को नष्ट करती है, उस प्रकार वह सरस्वती देवी जगत की जड़ता को नष्ट करते हुए आपकी वाणी का विकास कर सदा उल्लास प्रदान करे ॥२॥ ___ कमल भ्रमर एवं काशपुष्प के समान कांति वाले, हुंकार चक्र एवं पिनाक नामक धनुष को धारण करने वाले, हंस गरुड़ एवं नन्दि द्वारा संचार करने वाले, कमल क्षीरसमुद्र
एवं कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले ब्रह्मा विष्णु महेश आपका कल्याण करें॥३।। ४. संवत् बारह सौ पचत्तर १२७५ मार्ग सुदि ५ शनिवार। स्वस्ति । श्रीयुक्त धारा में समस्त
ख्याति से युक्त ५. प्राप्त किये हुए पांच महाशब्दों के अलंकार से शोभायमान, परमभट्टारक महाराजाधिराज
परमेश्वर परममाहेश्वर श्री ६. लिम्बार्य के प्रसाद व वर से प्रताप को प्राप्त करने वाले श्रीमान् देवपालदेव के चरणों
के द्वारा पृथ्वी के वृद्धिंगत होने से कल्याण (युक्त) विजय राज्य में ___ संवत्सर के बारह सौ पचत्तरवें वर्ष में मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष में चित्रमान नामक संवत्सर में ॥४॥
पंचमी तिथि शनिवार के संयोग में, विष्णु दैवत (श्रवण) नक्षत्र में, हर्षण नामक योग में, धात दैवत करण में ॥५॥
श्रीयुक्त उन्दपुर में पहिले दोसि नामक व्यक्ति था जो लोक में व त्रैलोक्य में सर्वगुणों से विख्यात था व सज्जनों को मान्य था।६।। .
उससे उत्पन्न पुत्र श्री विल्हण शुद्धबुद्धि वाला हुआ जो कामदेव के समान सुन्दर था। उसका पुत्र श्री ढ़ल नामक था जो व्यापारियों में महात्मा व महान कीर्तियुक्त था ।।७।।
उसका छोटा भाई केशव नामधारी था जो व्यापार में शुद्धमति, धर्म का निकेतन, ब्राह्मण-भक्त और सदा स्वजनों व अन्यजनों में अनुराग रखने वाला था ॥८॥ --
सुजन्मे उस केशव ने इस सुन्दर शरीर को कमलदल पर पड़े जल के समान (क्षण भंगर) देख कर अपना मन धर्म में लगाया ॥९॥ ____ उसने हर्षपुर में लोगों को आनन्द देने वाला शिव का मंदिर व समुद्र के समान एक सुन्दर तालाब बनवाया ॥१०॥ ___ उसके पास श्रेष्ठ हनुमान, क्षेत्रपाल, गणेश, कृष्ण, नकुलीश व अम्बिका की मूर्तियां . स्थापित करवाईं ॥११॥ ___ब्राह्मणों को सदा संतुष्ट करने से लोकानुराग प्राप्त करने वाले, देवपूजा व अग्नियज्ञों के करने से उसने बहुत अधिक यश की प्राप्ति की ॥१२॥
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