SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सीहोर अभिलेख २४५ संविदितं यथा श्रीमदमरेश्वरतीर्थावस्थितरस्माभिद्विसप्तत्याधिक-द्वादशशत-संवत्सरे भाद्रपदपौर्णमास्यां चन्द्रोपरागपर्वणि रेवाकपिलयोः सङ्गमे स्नात्वा भगवन्तं भवानीपतिमोङकारं लक्ष्मीपतिं चक्रस्वामिनं चाऽभ्यर्च्य संसारस्याऽसारतां दृष्ट्वा । तथा हि। वाताभ्रविभ्रममिदं वसुधाधिपत्यमापातमात्रमधुरो विषयोपभोगः । प्राणास्तृणाग्रजलबिन्दुसमा नराणां धर्मः सखा परमहो परलोकयाने ॥२०॥ - - इति सर्व विमृश्याऽदृष्टफलमङ्गीकृत्य मुक्तावस्थूस्थानविनिर्गताय वाजसनेयशाखाध्यायिने काश्यप गोत्राय काश्यपावत्सारनैध्रुवेति त्रिप्रवरायाऽऽवसथिक-देल्ह-प्रपौत्राय पण्डित-सोमदेव-पौत्राय पण्डितजनसिंहपुत्राय पुरोहित-पण्डित-श्री-गोविन्दशर्मणे ब्राह्मणाय भूमिरियं चतु:कङकट-विशुद्धा सवृक्षमालाकुला सहिरण्यभागभोगसोपरिकर-घट्टादायलवणादायोत्यादि-सर्वादायसमेता सनिधिनिक्षेपा मातापित्रोरात्मनश्च पुण्ययशोभिवृद्धये चन्द्रार्णिवक्षिति समकालं यावत् परया भक्त्या शासनेनोदकपूर्वं प्रदत्ता। तन्मत्वा तन्निवासि-पट्टकिलजनपदैर्यथादीयमानभागभोगकरहिरण्यादिकमाजाविधेयैर्भूत्वा सर्वममुष्म दातव्यम् । सामान्यं चैतत्पुण्यफलं बुध्वाऽस्मद्वंशजैरन्यैरपि भाविभोक्तृभिरस्मत्प्रदत्तधर्मादायोऽयमनमन्तव्यः पालनीयश्च । उक्तं च । बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् ।।२१॥ स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेत् वसुन्धराम् । स विष्टायां कृमिर्भूत्वा पितृभिः सह मज्जति ।।२२।। सर्वानेवं भाविनो भमिपालान भयो भयो याचते रामचन्द्रः । सामान्योऽयं धर्मसेतुर्नराणां काले काले पालनीयो भवद्भिः ॥२३॥ इति कमलदलाम्बुबिन्दुलोलां श्रियमनुचिन्त्य मनुष्यजीवितं च। सकलमिदमुदाहृतं च बुध्वा न हि पुरुषैः परकीर्तयो विलोप्याः ॥२४॥ इति । संवत् १२७२ भाद्रपदसुदि १५ बुधे । दू । श्री मु ३। रचितमिदं महासांधिविग्रहक-राजा सलखणसम्मतेन राजगुरुणा मदनेन । स्वहस्तोऽयं महाराज-श्री-अर्जुनवर्मदेवस्य । उत्कीर्णं पं वाप्यदेवेन। (अनुवाद) ओं। पुरुषार्थों में सर्वश्रेष्ठ धर्म को नमस्कार । १. समस्त पृथ्वी के प्रतिबिंब स्वरूप भूमि को ग्रहण कर जो संसार को आनन्दित करते हैं ऐसे द्विजेन्द्र आपका कल्याण करें। २. रण में हत क्षत्रियों के रक्त से व्याप्त अस्त होते सूर्य के प्रतिबिम्ब के समान पृथ्वी जिस दानदाता के लिए लालिमा को धारण किए हुए है उस परशुराम की जय हो।... ३. जिसने अपनी प्राणेश्वरी (सीता) की वियोगाग्नि को युद्ध में मंदोदरी के अश्रुजल से बुझाया वह राम आप को श्रेय प्रदान करे। ४. भीम के द्वारा जिसके चरण अपने मस्तक पर धारण किये गये, जिसने वंश को चन्द्र के समान (निर्मल) बनाया, वह युधिष्ठिर सदा विजयी हो। ५. परमार कुल में सर्वश्रेष्ठ, कंस को जीतने वाले की महिमा वाला नरेश श्री भोजदेव नामक हुआ जिसने सीमाओं तक पृथ्वी को विजित किया। दिशाओं की गोद तरंगित होने पर जिसकी यशचंद्रिका उदित हो रही है (वैसे) शत्रु ... नरेशों का यश कमलों के समान मुरझा गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy