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________________ परमार अभिलेख ४. भीम के द्वारा जिस के चरण अपने मस्तक पर धारण किये गये, जिसने वंश को चन्द्र के समान (निर्मल) बनाया, वह युधिष्ठिर सदा विजयी हो। ५. परमार कुल में सर्वश्रेष्ठ, कंस को जीतने वाले की महिमा वाला नरेश श्री भोजदेव नामक हुआ जिसने सीमाओं तक पृथ्वी को विजित किया। दिशाओं की गोद तरंगित होने पर जिसकी यशचंद्रिका उदित हो रही है (वैसे) शत्रु नरेशों का यश कमलों के समान मुरझा गया। ७. उसके (पश्चात् ) उदयादित्य हुआ जो सदा उत्साह में कुतुहलपूर्ण, असाधारण वीर व श्रीयुक्त था, और जो विरोधियों की अलक्ष्मी का कारण था । ८. कल्पान्त के तुल्य महायुद्धों के होने पर जिस के तीखे बाणों द्वारा कितने अत्यन्त उब्ध नरेश शक्तिशाली सेनाओं सहित उन्मूलित नहीं किये गये ? (महाप्रलय काल में वायु द्वारा कितने महापर्वत नहीं उखाड़े गये) उससे नरवर्मन् नरेश हुआ जिसने अपने शत्रुओं के मर्मस्थल छिन्न कर दिये। बुद्धिमान जो धर्म के उद्धार करने में व राजाओं के लिए सीमा स्वरूप था। १०. प्रतिदिन प्रातःकाल स्वयं ब्राह्मणों के लिए ग्रामपद देने से उसने एक पांव वाले धर्म को अनेक पांव प्रदान कर दिये। ११. उसका पुत्र यशोवर्मन् हुआ जो क्षत्रियों में मुकुट रूप था। इसका पुत्र अजयवर्मन् था जो विजय व लक्ष्मी के लिए विख्यात था । १२. उसका पुत्र विन्ध्यवर्मन् था जिसकी उत्पत्ति द्वारा (वंश) धन्य हुआ, जो वीर शिरोमणि था और गुर्जर (नरेश) को हराने में इस महाभुज ने (शक्ति) लगाई। १३. रणकुशल जिसका खड्न मानो तीनों लोकों की रक्षा करने के लिए ही धारा नगरी के उद्धार करने के साथ ही विधारता को धारण कर रहा है। १४. उसी के गुणधर्म वाला, इन्द्र के समान शोभायुक्त पुत्र सुभटवर्मन् भूतल पर धर्म में आरूढ़ हुआ। १५. सूर्य की कांति वाले दिग्विजयी जिसका प्रताप जलते हुए गुर्जरनगर में दावानल के बहाने से आज भी गर्जना कर रहा है। (इसके) स्वर्गलोक को जाने पर उसका पुत्र अर्जुन नरेश आज भी पृथ्वी मण्डल को अपने बाहु पर कंकण के समान धारण कर रहा है। १७. बाललीला के समान युद्ध में जयसिंह के पलायन करने पर जिसक। यश दिक्पालों के हास्य के बहाने से दिशाओं में फैल रहा है। १८. साहित्य एवं गायन विद्या के सर्वस्व निधि जिसने मानो सरस्वती देवी का पुस्तक व वीणा का भार ही उतार लिया हो। १९. तीन प्रकार के वीर (दयावीर, दानवीर, युद्धवीर) जिसने अपनी कीर्ति तीन प्रकार से विकसित की, जगत को तीन प्रकार से पवित्र करने में इसके अतिरिक्त अन्य कौन ? वह ही नरनायक सब प्रकार से उदयशील हो कर शकपुर प्रतिजागरणक में पिडिविडि ग्राम में समस्त राजपुरुषों, श्रेष्ठ ब्राह्मणों, आसपास के निवासियों, पटेलों और ग्रामीणों को आज्ञा देता है-आपको विदित हो कि मंडपदुर्ग में ठहरे हुए हमारे द्वारा बारह सौ सड़सठ संवत्सर के फाल्गुन में १२६७ शुक्ल दशमी को अभिषेक पर्व पर स्नान कर, भगवान भवानीपति की अर्चना कर, संसार की असारता देख कर, तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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