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________________ मांडू अभिलेख २३१ एक सुवर्ण (मुद्रा) एक गाय या एक अंगुल भूमि का जो हरण करता है वह संप्लव के होने तक नरक को प्राप्त करता है ।।१०।। ___ गाय पृथ्वी व सरस्वती के तीन दान कहे गये हैं जो दोहने बाहने व प्रदान करने से सात पीढ़ियों तक पवित्र करते हैं ॥११॥ यहां पूर्व के नरेशों ने धर्म व यश हेतु जो दान दिये हैं, वे त्याज्य एवं के के समान जान कर कौन सज्जन व्यक्ति उसे वापिस लेगा ॥१२॥ सभी उन होने वाले नरेशों से रामभद्र बारबार याचना करते हैं कि यह सभी नरेशों के लिये समानरूप धर्म का सेतु है। अत: अपने अपने काल में आपको इसका पालन करना चाहिये ।।१३।। मेरे वंश में उत्पन्न अथवा अन्य नरेशों के वंशों में उत्पन्न पथ्वी पर जो भावी नरेश पापनिवृत्त मन से मेरे भूमिदान को पालन करेंगे, मैं उनके चरणकमलों में अपना सिर नमन करता हूं ॥१४॥ ३८. ऋषियों के इन वचनों का क्रम से अवलम्बन कर ___ इस प्रकार लक्ष्मी व मनुष्य जीवन को कमलदल पर पड़ी जलबिन्दु के समान चंचल समझ कर और इन सब पर विचार कर मनुष्यों को परकीर्ति नष्ट नहीं करना चाहिये ॥१५॥ ४०. इति । ये हस्ताक्षर ४१. स्वयं महाकुमार श्री उदयवर्मदेव के हैं। दूतक श्री मण्डलीक क्षेमराज । श्री ।। (५८) मांडू से प्राप्त विंध्यवर्मन् कालीन प्रस्तरखण्ड अभिलेख (विल्हण विरचित विष्णु प्रशस्ति) प्रस्तुत अभिलेख एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है जो मांडू के अवशेषों में १९०० ई. के आस पास प्राप्त हुआ था। इसका उल्लेख के. के. लेले ने १९३० में ए. भ. ओ. रि. इं., भाग ११ पृष्ठ ४९-५३ पर किया। अभिलेख भगवान विष्णु की स्तुति है । प्रस्तर खण्ड अत्यन्त जीर्ण अवस्था में है। आधे से अधिक भाग भग्न हो गया है। प्राप्त भाग का आकार ६७४ २४ सें. मी. है। अभिलेख पद्यमय है। सभी श्लोक अनुष्टुभ छन्द में हैं। परन्तु श्लोकों में क्रमांक न होने से, यह कहना कठिन है कि प्रस्तर खण्ड में कितने श्लोक थे। इसमें १७ पंक्तियां शेष हैं। प्रत्येक पंक्ति ८५ अक्षर हैं। सभी पंक्तियां क्षतिग्रस्त हैं।। प्राप्त खण्ड में सभी श्लोक भगवान विष्णु के विभिन्न अवतरणों से संबंधित हैं। श्लोक उच्चकोटि के हैं। पंक्ति १६-१७ में इसका रचयिता विल्हण कवि लिखा है जिसने विष्णु को अर्पण करने हेतु श्रेष्ठतम श्लोकों की प्रस्तुत माला गूंथी। कवि विल्हण नरेश विंध्यवर्मन् (११७५११९४ ई.) का अत्यन्त प्रिय सांधिविग्रहिक मंत्री था। विंध्यवर्मन् के पुत्र सुभटवर्मन् (११९४१२०९ ई.) ने विष्णु के देवालय के लिये दो वाटिकायें दान में दीं। परमार राजवंश साहित्य एवं ललित कलाओं के विकास के लिये सर्व विख्यात है। पूर्वकालीन सभी नरेशों के समय में इन क्षेत्रों में अभूतपूर्व उन्नति हुई। विंध्यवर्मन् के समय में उज्जैन, धार, नालछा (नलकच्छपुर) एवं मांडू (मंडपदुर्ग) साहित्य के प्रमुख केन्द्र थे। सुल्तान मुहम्मद गौरी ने जब अजमेर का भूभाग अपने अधीन कर लिया, तो बहुसंख्यक ब्राह्मण व जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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