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________________ (१९) नारायण तथा त्रिविधवीर चूड़ामणि निरूपित करता है। इसी प्रकार राजकुमार जगद्देव ने भी अपने को त्रिविधवीर चूड़ामणि की उपाधि से अलंकृत किया था। नरेश सर्वशक्ति सम्पन्न परमार नरेश स्वयं को सर्वोच्च शक्ति सम्पन्न मानते थे । नरेश ही राज्य की समस्त शक्ति का स्रोत था । राज्य के समस्त अधिकारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण एवं पदमुक्ति उसी के अधिकार में होती थी। वह साम्राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। वह सेना का सर्वोच्च सेनापति था एवं युद्ध में सेना का नेतृत्व करता था। साथ ही वह धर्मशास्त्रों के अनुरूप अपनी समस्त प्रजाओं का पालक भी था। उत्तराधिकार परमार साम्राज्य में नरेश का पद वंशानुक्रम से चलता था। सामान्यतः नरेश का बड़ा पुत्र उसका उत्तराधिकारी होता था। परन्तु पुत्र न होने पर राजसिंहासन के लिए संघर्ष हो जाते थे । भोज महान की निस्संतान मृत्यु हो जाने पर उसके दो संबंधियों, जयसिंह प्रथम एवं उदयादित्य के मध्य राजसिंहासन के लिए संघर्ष हुआ। इसमें कल्याणो के चालुक्यों की सहायता से जयसिंह प्रथम सफल हुआ तथा वह परमार राजसिंहासन पर आरूढ़ हो गया। परन्तु उदयादित्य ने उससे संघर्ष चालू रखा। अन्ततः कुछ समय उपरान्त एक युद्ध में जयसिंह प्रथम की मृत्यु हो जाने पर उदयादित्य सिंहासन प्राप्त कर सका। संभवतः कौटुम्बिक ईर्ष्या के कारण ही उदयादित्य एवं उसके उत्तराधिकारियों के अभिलेखों में जयसिंह प्रथम का नाम वंशावली से पूर्णतः निकाल दिया गया। मन्त्री परिषद् प्रशासनिक कार्यों में नरेश ने अपनी सहायता के लिए एक मंत्री परिषद् की स्थापना की थी। परमार अभिलेखों में इस संबंध में कुछ भी ज्ञात नहीं होता। १०वीं शताब्दी में सोमदेवकृत नीतिवाक्यामृत ग्रन्थ में लिखा मिलता है "नरेश को मंत्रणा हेतु तीन, पांच या सात मंत्रियों की परिषद् बनाना चाहिए" (अध्याय १८, श्लोक ६) । मनुस्मृति के अनुसार नरेश को सात या आठ मंत्री नियुक्त करना चाहिये (अध्याय ७, श्लोक ५४-५६)। इसी प्रकार मानसोल्लास में सोमदेव ने भी लिखा है कि नरेश को सात या आठ मंत्रियों की मंत्री परिषद् बनानी चाहिये (भाग १, अध्याय २, श्लोक ५७) । हमें यह ज्ञात नहीं है कि परमार नरेशों ने मंत्रि परिषद् की स्थापना की थी या नहीं जो राजकार्यों में उनकी सहायता करते थे। मंत्री दो प्रकार के होते थे--मति सचिव एवं कर्म सचिव । मति सचिव अथवा बुद्धि सचिव ऐसे मंत्री होते थे जो साम्राज्य एवं प्रशासन संबंधी सभी समस्याओं के संबंध में परामर्श देते थे। कर्म सचिव वे मंत्री होते थे जो नरेश की आज्ञाओं को सुचारू रूप से कार्यान्वित करवाते थे। परमार राजवंशीय अभिलेखों में हमें निम्नांकित मंत्रियों एवं विशिष्ट अधिकारियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं:---- महाप्रधान महाप्रधान का स्थान नरेश के पश्चात् राज्य के सर्वोच्च अधिकारी के रूप में प्राप्त होता है। वह राजमुद्रा का उपयोग करता था। वह राज्य के समस्त प्रशासन को नियंत्रित रखता था। राजस्व विभाग पर उसकी दृष्टि विशेष रूप से रहती थी। वह राजाज्ञाओं को तैयार करवाता था तथा संबंधित प्रदेश में निस्सृत करवाता था। अभिलेखों में हमें कुछ महाप्रधानों के नाम प्राप्त होते हैं--नरेश वाक्पति द्वितीय का महाप्रधान रुद्रादित्य (क्र. ५, ६), यशोवर्मन् का महाप्रधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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