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भोपाल अभिलेख
१. ओं । स्वस्ति । लक्ष्मी व विजय का उदय हो ।
जो संसार के बीज के समान चन्द्र की कला को संसार की उत्पत्ति के हेतु मस्तक पर धारण करते हैं, बादल ही जिनके केश हैं ऐसे महादेव सर्वश्रेष्ठ हैं ॥१॥
अनुवाद ( प्रथम ताम्रपत्र- पृष्ठ भाग )
७.
३. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री नरवर्मदेव के पादानुध्यायी
४. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री यशोवर्मदेव के पादानुध्यायी सब प्रकार की ५. ख्याति से युक्त पाँच महाशब्दों की उपाधि को प्राप्त करने वाले विराजमान महाकुमार श्री त्रैलोक्यवर्मदेव के चरणों के
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प्रलय काल में चमकने वाली विद्युत् की आभा जैसी पीली, कामदेव के शत्रु शिव की जटायें तुम्हारा कल्याण करें || २ ||
६. प्रसाद से विजय का आधिपत्य प्राप्त करने वाले, सब प्रकार की ख्याति से युक्त पांच महाशब्दों की उपाधि प्राप्त करने वाले महाकुमार श्री
हरिचन्द्रदेव विराजमान हो कर महाद्वादशकं मण्डल में निखिलपद्र द्वादशक से संबद्ध दादरपद्र ग्राम के निवासियों, अन्य ग्रामों के
८.
निवासियों राजपुरुषों विषयिकों पटेलों ग्रामीणों श्रेष्ठ ब्राह्मणों को आज्ञा देते हैं--आप को विदित हो कि
९. यहाँ मेरे द्वारा श्री भैल्लस्वामिदेव के सामने स्थित होने वाले ( मैं ने) श्री विक्रम संवत् के व्यतीत बारह सौ चौदहवें वर्ष में
१०. कार्तिक सुदि पूर्णिमा को हुए सम्पूर्ण सामग्रहण पर्व पर कलियुग की कालिमा को हरण करने वाली वेत्रावती के जल में
११. स्नान करके, देव ऋषि मनुष्य व पितरों को विधिपूर्वक तृप्त करके, चर व अचर के स्वामी भगवान भवानीपति की और गर्वित असुरपति की निद्रा का हरण करने वाले हरि की विधिपूर्वक अर्चना कर तिल
१२. अन्न घी की आहूतियों द्वारा अग्नि में हवन कर संसार को आनन्द देने वाले चन्द्र को अर्घ्य दे कर बछड़े समेत कपिला गाय की तीन प्रदक्षिणा कर,
१३. संसार की असारता को जान कर, यौवन को कमल दल पर गिरे जल के समान अस्थिर मान कर, यौवनमद में मस्त रहने वाली व्यभिचारिणी स्त्री
१४. की भौं की भंगिमा के समान द्रव्य को नाशवान देख कर, द्रव्य के टुकड़े के पीछे विक्स हो विषकन्या के चंचल चित्त के समान जीवन को जान कर,
१५. और कहा गया है-
इस पृथ्वी का आधिपत्य वायु में बिखरने वाले बादलों के समान चंचल है, विषयभोग प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाला है, मानव प्राण तिनके के अग्रभाग पर रहने वाले जलबिन्दु के समान हैं, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा होता है || ३ ||
१६. सांकृत्यगोती अग्निहोत्रिक श्री भारद्वाज के पुत्र आवस्थिक श्रीधर के लिए १ पद,
१७. भारद्वाज गोत्री त्रिपाठी नारायण के पुत्र त्रिपाठी गर्तेश्वर के लिए १ पद, कृष्णातेय गोत्री द्विवेद क्षीरस्वामि के पुत्र
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१८. द्विवेद उद्धरण के लिये १ पद, अद्वाह गोत्री द्विवेद वत्स के पुत्र द्विवेद यशोधबल के लिए १ पद, काश्यप गोती
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