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________________ उज्जैन अभिलेख १९९ १९९ (४६) उज्जैन का यशोवर्मदेव का ताम्रपत्र अभिलेख (अपूर्ण) (संवत् ११९२-११३५ ई.) प्रस्तुत अभिलेख एक ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण है जो पूर्ववणित यशोवर्मन्-लक्ष्मीवर्मन् के ताम्रपत्र (क्र. ४४) के साथ १८१२ ई. में उज्जैन से प्राप्त हुआ था। इसका उल्लेख भी उसी के साथ किया गया। १८९० ई. में प्रो. कीलहान द्वारा इं. ऐं, भाग १९ पृष्ठ ३४५ व आगे पर इसका विवरण दिया गया। वर्तमान में यह ब्रिटिश संग्रहालय लंदन में रखा है। अभिलेख का आकार ३७.७८ ४ २७ सें.मी. है । यह संपूर्ण अभिलेख, जो संभवत: दो ताम्रपत्रों पर रहा होगा, का उत्तरार्द्ध है। इसमें लेख अग्रभाग पर लिखा है। ऊपर में दो छेद हैं। किनारे मोटे हैं व लेख वाले भाग की ओर मुड़े हैं। इसका वजन २.०७ किलोग्राम है। इसमें नीचे बायें कोने में दोहरी पंक्ति के चतुष्कोण में गरुड़ का राजचिन्ह है। इस की चोंच मुड़ी हुई व नुकीली है। दो पंख हैं एवं वह कुछ झुका हुआ है। बायें हाथ में तीन नाग हैं जिन को दाहिने हाथ से मार कर निगलने के प्रयत्न में है। अक्षरों की बनावट १२वीं सदी की नागरी लिपि है । अक्षर .८ सें. मी. लम्बे हैं। अभिलेख १४ पंक्ति का है। अन्त में दो अन्य अक्षर उत्कीर्ण हैं जिनकी लम्बाई प्रायः तिगुनी है। अक्षरों की बनावट सुन्दर है। बाद की पंक्तियां कुछ घिसी हुई हैं। भाषा संस्कृत है व गद्य पद्यमय है। इसमें ५ श्लोक हैं, शेष गद्यमय है । व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, म् के स्थान पर अनुस्वार बने हैं। र के बाद का व्यञ्जन दोहरा है। पंक्ति ६ में अवग्रह का प्रयोग है। कुछ अन्य त्रुटियां भी हैं जिन को पाठ में सुधार दिया गया है। काल व प्रदेश के मान से ये सामान्य त्रुटियां हैं। तिथि पंक्ति १२-१३ में अंकों में संवत् ११९२ मार्ग (-शीर्ष) वदि ३ है। दिन का उल्लेख नहीं है। यह सोमवार, २५ नवम्बर, ११३५ ई. बराबर है। इसका प्रमुख ध्येय अप्राप्य प्रथम ताम्रपत्र में रहा होगा। प्राप्त भाग की पंक्ति १ में श्रीमती मोमल देवी की वार्षिकी के अवसर पर भूदान का उल्लेख है। वह संभवतः यशोवर्मन् की माता थी। __अभिलेख की पंक्ति २-३ में भूदान का विवरण है, परन्तु यहां वाक्य रचना कुछ त्रुटिपूर्ण है जिससे उसका अर्थ करने में कठिनाई है। इसका अर्थ कुछ इस प्रकार लगाया जा सकता है कि क्रमशः लघुवैगणपद्र व अर्द्धठिक्करिका ग्राम-समूहों से संबद्ध देवलपाटक व ठीकरी ग्रामों से माप्यकीय ब्राह्मण द्वारा निर्धारित दो-दो हल भूमि, जो ११ हल भूमि व १७ निवर्तन भूमि से संबद्ध थी, दो व्यक्तियों को दान में दी गई। वास्तव में एक हल भूमि से तात्पर्य इस नाप की खेती योग्य भूमि से है जो एक हल द्वारा एक ऋतु में जोती जा सके। इस प्रकार निवर्तन भूमि का वह नाप है जो २० दण्ड (९६ पर्व या १९२ फीट) के बराबर होता है। माप्यकीय ब्राह्मण ऐसा राजकीय अधिकारी होना चाहिये जो शास्त्र-वर्णित नियमों के अनुसार नाप कर भूमि का निर्धारण करता था। पंक्ति क्र. १३ में दूतकों के उल्लेख हैं। इनमें पुरोहित ठक्कुर श्री वामन स्वामी, ठक्कुर श्री पुरुषोत्तम तथा महाप्रधान राजपुत्र श्री देवधर हैं। इसके साथ 'आदि' शब्द से अनुमानतः इस सूचि में कुछ अन्य व्यक्ति भी थे। इतने दूतकों के नाम एक साथ रखने का कारण अज्ञात है। सामान्यतः दूतक एक ही होता था। अगली पंक्ति में 'र' अक्षर सामान्य से कुछ बड़ा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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