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________________ (१४) ब्रह्मक्षत्र उत्पत्ति वाक्पति द्वितीय के राजकवि हलायुध ने अपने आश्रयदाता नरेश को ब्रह्मक्षत्र निरूपित किया है। अपने ग्रन्थ पिंगलसूत्रवृत्ति में वह लिखता है:-- ब्रह्मक्षत्र कुलीनः समस्त सामन्त चक्रनुत चर्णः । सकल सुकृतक पुजः श्रीमान् मुजश्चिरं जयाति ।। (अध्याय ४, पृष्ठ ४९, ४/१९) इससे ऐसा आभास होता है कि मुज ऐसे वंश में उत्पन्न हुआ था जिसमें ब्राह्मण एवं क्षत्रिय, दोनों जातियों की विशिष्टताएं, अर्थात् ब्राह्मणों की विद्वत्ता एवं क्षत्रियों का शौर्य विद्यमान थे । शुंग, सातवाहन, कदम्ब आदि वंशों के समान परमार नरेश एक ऐसे विशिष्ट व्यक्ति की संतान थे जो यद्यपि ब्राह्मण था परन्तु शवोपजीवि होने के नाते वह क्षत्रियतुल्य माना जाने लगा। परमारों के संबंध में यह तथ्य विशेषरूप से महत्वपूर्ण है। अतएव यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि यद्यपि वे मूलतः वसिष्ठ गोत्री ब्राह्मण थे, परन्तु क्षात्रधर्म स्वीकार कर लेने के कारण ब्रह्मक्षत्रिय कहलाने लगे। यह भी संभव है कि परमार राजवंश के संस्थापक ने किसी क्षत्रिय राजकुमारी से विवाह कर लिया हो। इस कारण इस वंश के नरेश स्वयं को क्षत्रिय कहने लगे। परमार अभिलेखों का महत्व परमार अभिलेखों के आधार पर तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्थितियों का ज्ञान प्राप्त होता है। विभिन्न क्षेत्रों की सूचनाओं का संकलन कर परमारकाल का महत्व दर्शाया जा सकता है। अभिलेखों के माध्यम से परमार नरेशों की उत्पत्ति, उनकी वंशावली, राजनीतिक सत्ता का क्षेत्र तथा उनके शासनकाल की तिथियों को प्रायः ठीक ठीक निर्धारित किया जा सकता है। वस्तुतः परमार वंशावली का निर्धारण उनके विभिन्न अभिलेखों एवं तत्कालीन साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर ही संभव है। प्रतीत होता है कि परमार नरेशों ने अपने नामों से कोई मुद्रा प्रचलित नहीं की। आज तक उनका कोई सिक्का उपलब्ध नहीं हुआ है। गांगुली महोदय ने अपने ग्रंथ में नरेश उदयादित्य के एक सिक्के का विवरण दिया है। परन्तु वह सिक्का परमारवंशीय नरेश उदयादित्य का स्वीकार करने में घोर आपत्ति है। इस प्रकार सिक्कों के अभाव में परमार अभिलेखों का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। परमार अभिलेखों के माध्यम से उस वंश के शासकों की साहित्यिक गतिविधियों पर प्रकाश पड़ता है। वे लोग सरस्वती के महान उपासक थे। उनके राजदरबार महान साहित्यिक गतिविधियों के केन्द्र थे। अभिलेखों से यह एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आता है कि देश के विभिन्न भूभागों से विद्वान ब्राह्मण बहुत बड़ी संख्या में परमार नरेशों से संरक्षण प्राप्त कर मालव राज्य में आकर बस गये। परमार नरेश स्वयं महान साहित्यकार थे। यह तथ्य भी उनके विभिन्न अभिलेखों तथा समकालीन साहित्यिक साक्ष्यों से उजागर होता है । अभिलेखों का वर्गीकरण ___ परमार कालीन अभिलेखों को मोटे रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है। प्रथम, वे राजकीय अभिलेख हैं जो नरेशों द्वारा विभिन्न अवसरों पर उत्कीर्ण करवाये गये थे। दूसरे, वे निजी अभिलेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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