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परमार अभिलेख
जो संसार के बीज के समान चन्द्र की कला को संसार की उत्पत्ति के हेतु मस्तक पर धारण करते हैं, मेघ मंडल ही जिसके केश हैं, ऐसे महादेव श्रेष्ठ हैं ||१||
प्रलय काल में चमकने वाली विद्युत् की आभा जैसी पीली, कामदेव के शत्रु, शिव की जटायें तुम्हारा कल्याण करें || २ ||
२. परमभट्टारक महाराजाधिराज
३. परमेश्वर श्री सिंधुराजदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री भोजदेव के पादानुध्यायी
४. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री उदयादित्यदेव के पदानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज
५. परमेश्वर श्री नरवर्मदेव कुशलयुक्त हो उपेन्द्रपुर मण्डल में भण्डारक प्रतिजागरणक में महामाण्डलिक श्री राजदेव द्वारा भोगे जा रहे
६. कदम्बपद्रक ग्राम में आये हुए समस्त राजपुरुषों, श्रेष्ठ ब्राह्मणों, आसपास के निवासियों, पटेलों व ग्रामीणों को
७. आज्ञा देते हैं - आपको विदित हो कि श्रीयुक्त धारा में ठहरे हुए हमारे द्वारा स्नान कर, चर व अचर के स्वामी भगवान भवानीपति की विधिपूर्वक अर्चना कर,
८. संसार की असारता को देखकर तथा-
इस पृथ्वी का आधिपत्य वायु में बिखरने वाले बादलों के समान चंचल है, विषयभोग प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाला है, मानव प्राण तिनके के अग्रभाग पर रहने वाले जलबिन्दु के समान है, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा होता है ||३||
घूमते हुए संसार रूपी चक्र की धार ही जिसका आधार है, भ्रमणशील ऐसी लक्ष्मी को पा कर जो दान नहीं करते उनको पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ फल नहीं मिलता ||४||
१०. इस जगत के विनश्वर स्वरूप को समझकर, अदृष्टफल को स्वीकार कर, चन्द्र सूर्य
११. समुद्र पृथ्वी के रहते तक परमभक्ति के साथ मध्यदेश के अन्तर्गत शृंगपुर स्थान से आये
हुए कात्यायन गोत्री कात्यायन
१२. कपिल विश्वामित्र इन प्रवरों के माध्यंदिन शाखा के अध्यायी, ब्राह्मण द्विवेद नारायण के पौत्र दीक्षित देवशर्म के पुत्र द्विवेद आशाधर के लिये
१३. ऊपर लिखे ग्राम से दण्ड के प्रमाण से छियानवे पर्व ( लम्बी ) व बयालीस पर्व ( चौड़ी ) बीस भूनिवर्तन से नापी
१४. बीस हल भूमि, महामाण्डलिक श्री राजदेव के द्वारा ग्यारह सौ चव्वन सम्वत् में कार्तिक सुदि पंद्रह १५. को स्वयं के द्वारा भुक्त भूमि में से दस हल दी गई व महामाण्डलिक श्री राजदेव की ( पुत्र ) वधु श्रीमती महादेवी द्वारा पूर्व में कल्पित
१६. चार हल भूमि तथा हमारे द्वारा ग्यारह सौ उनसठ सम्वत्सर में पौष सुदि
१७. पंद्रह को भूतरप्रन पर्व के अवसर पर छः हल भूमि, इस प्रकार बीस हल भूमि
( द्वितीय ताम्रपत्र )
१८. ( अपनी ) सीमा, तृण भूमि तक, साथ में हिरण्य भाग भोग उपरिकर सब प्रकार की आय समेत १९. माता पिता व स्वयं के पुण्य व यश की अभिवृद्धि हेतु शासन ( प्रस्तुत राजाज्ञा ) द्वारा जल हाथ में लेकर दान में दी गई है। इसको मानकर
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