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________________ १७४ परमार अभिलेख भूदान किया था। अतः संभावना यही है कि वह भिल्लस्वामी में अपने मालव अभियान के समय ठहरा होगा। उपरोक्त विवरणों से यह निश्चित होता है कि प्रस्तुत अभिलेख की तिथि से पूर्व अपने शासन के प्रथम दशक में नरवर्मन निरन्तर अपने शत्रुओं से संघर्ष में संलग्न रहा था। ___ भौगोलिक स्थानों में उपेन्द्रपुर संभवतः शिवपुरी जिले का दक्षिण पूर्वी भाग रहा होगा, अर्थात् बेतवा के पश्चिम में रानोद के चारों ओर का प्रदेश । भण्डारक की समता वी. वी. मिराशी के अनुसार मुन्दर से संभव है जो उज्जन के उत्तरपूर्व में २४ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कदम्बपद्रक की समता भण्डारक से एक मील पूर्व की ओर कामलीखेड़ा से की जा सकती है (वी .वी. मिराशी, का. इं. इं., भाग ४, पृष्ठ १५२) । (मूलपाठ) (१. २. ४. ५ अनुष्टुभ ; ३. ७ वसन्ततिलका; ६ इन्द्रवज्रा; ८ शालिनी; ९ पुष्पिताग्रा) १. ओ। स्वस्ति। श्री जयोभ्युदयश्च । जयति [व्योमकेशोसौ यः सर्गाय वि (बि) भत्ति तां (ताम्)। ऐंदवी शिरसां लेखां जगद्वीजाङ्ग (ङकु) राकृति (तिम्) ॥[१।।] तन्वन्तु वः स्मरारातेः कल्याणमनिशंजटाः । कल्पान्तसमयादात (योद्दाम) तडिद्वलय पिङ्गलाः ।।२।।] परमभद्वा (ट्टा) रक-महाराजा३. धिराज-परमेश्वर-श्रीसिन्धुराजदेव-वा (पा) दानुध्यात-परन (म) भट्टारक-महराजाधिराज परमेश्वर-श्री भोजदेव-पादानुध्या४. त-व (प) रमभट्टारक-महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्री उदयादित्यदेव-पादानुध्यात-परमभट्टारक महाराजाधिराज-प५. रमेश्वर-श्री नरवर्मदेवः कुशली। उपेन्द्रपुर मण्डले भण्डारक प्रतिजागरणके महामाण्डलिक श्री राज्य (ज) देव भुय्य (ज्य)६. मान कमम्व (दम्ब)पद्रक ग्रामे समुपगतास्न (तानस) मस्त राजपुरुषान् वा (ब्रा) ह्मणा (णो) न्त (त्त) रान् [प्रतिनिवासि पट्टकिलजनपदादींश्च वो (बो)७. धयत्यस्तु वः संविदितं यथा श्रीमद्धारावस्थितरस्माभिः स्नात्वा चराचर गुरुं भगवन्तं भवानीपति समभ्यच्र्य संसा८. रस्यासारतां दृष्ट्वा तथा हि । वाताभ्रविभ्रममिदं वसुधाधिपत्यमापातमात्रमधुरो विषयोपभोगः । प्राणस्त्रि (स्तृ) णाग्रजलविन्दुसमा नराणां धर्मः सखा परमहो परलोकयाने [३॥] भ्रमत्संसार चक्रारधाराधारामिमां श्रियं । प्राप्य ये न ददुस्तेषां पश्चात्तापः परं फलं ॥४॥] इति जगतो विन[श्वरं स्वरूपमाकलय्यादृष्ट-फलमङ्गीकृत्य चन्द्रार्का११. पर्णव-क्षिति-समकालं यावत्परया भक्त्यिा ] श्रीमध्यदेशान्त:पाति शृंगपुरस्थान विनिर्गत ___कात्यायनगोत्र कात्यायन १२. कपिल विश्व (श्वा) मित्रेति प्रवर माध्यंदिनशाखाध्यायि वा (ब्राह्मण द्विर्वे (वे) द नारायण पौत्र दीक्षित देवस (श)मसुत द्विवेद आसा (शा)धराय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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