SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमेरा अभिलेख १४७ कृपाणिका बंध उत्कीर्ण है। दूसरा खण्ड चौबारा डेरा मंदिर क्रमांक १ में दीवार में लगे पत्थर पर खुदा है। इसमें उज्जैन नागबंध के समान ५ पंक्तियों में संस्कृतमाला उत्कीर्ण है। तीसरा खण्ड पास ही एक अन्य मंदिर की दीवार में लगे पत्थर पर है। इसमें उज्जैन के श्लोक ८५ अथवा धार के प्रथम श्लोक के समान एक श्लोक उत्कीर्ण है। तीनों प्रस्तर खण्ड रेतीले पत्थर की शिलायें हैं, जिन पर काल का प्रभाव हो गया है। अक्षर अत्यन्त क्षीण व क्षतिग्रस्त हो गये हैं। उनको उज्जैन व धार के नागबंधों की सहायता से पढ़ा जा सकता है। अक्षर प्रायः २.२ सें. मी. लम्बे हैं। अतः अभिलेख का आकार बड़ा है। नागबंध वाले खण्ड का आकार १०३ x ६७ सें. मी. है। इसमें खड्ग का हत्था तथा नाग से बने कोष्टक अत्यन्त क्षतिग्रस्त हो गये हैं। नागबंध का विवरण पूर्ववर्णित उज्जैन (क्र. ३०) व धार (क्र. ३१) में प्राप्त नागबंधों के अनुसार है। इसका वास्तविक ध्येय जो भी रहा हो, परन्तु इन नागबंधों के माध्यम से संस्कृत भाषा की व्याकरण के मूल नियमों का प्रचार एवं प्रसार अवश्य हुआ होगा। अमेरा का नरवर्मन कालीन प्रस्तर अभिलेख (संवत् ११५१=१०९४ ई.) प्रस्तुत अभिलेख एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है जो विदिशा जिले में उदयपुर से ३ कि. मी. दूर अमेरा ग्राम में एक पुराने तालाब के किनारे मिला था। इसका प्रथम उल्लेख ए. रि. आ. डि. ग., १९२३-२४, पृष्ठ १६ पर किया गया। फिर ए. रि. आ. स. इं., १९२३-२४, पृष्ठ १३५ पर उल्लेख किया गया। प्रस्तर खण्ड पुरातत्व विभाग, सेंट्रल सर्कल, भोपाल में सुरक्षित है। अभिलेख का आकार ६०४५३ सें. मी. है। इसमें २४ पंक्तियां हैं जो काफी जर्जर हैं। अक्षरों की लंबाई १.२ सें. मी. से २ सें. मी. है। शुरु की आठ पंक्तियों के अक्षर काफी छोटे हैं व पास-पास खुदे हैं। परन्तु बाद के कुछ बड़े हैं व खुले हैं। पंक्ति क्र. १, ३-६, १११८, २३ काफी क्षतिग्रस्त हैं। अक्षरों की बनावट ११ वीं सदी की नागरीलिपि है। परन्तु कुछ स्थानों पर अत्यन्त त्रुटिपूर्ण है एवं अक्षरों में भेद करना भी कठिन हो जाता है। भाषा संस्कृत है, परन्तु अशुद्धियों से भरपूर है। अंतिम तीन पंक्तियों को छोड़ कर, सारा अभिलेख पद्यमय है। विरामचिन्ह गलत लगे हैं जिससे यह मालूम करने में ही कठिनाई होती है कि नया श्लोक कहां से शुरु होता है। श्लोकों में क्रमांक नहीं हैं। इसमें कुल १५ श्लोक हैं। व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, श के स्थान पर स का प्रयोग है। र के बाद का व्यञ्जन दोहरा कर दिया है। कुछ शब्द ही गलत है जिनको पाठ में सुधार दिया गया है। तिथि पंक्ति २२ में अंकों में लिखी है। यह संवत् ११५१ आषाढ़ सुदि ७ है। दिन का उल्लेख न होने के कारण इसका सत्यापन संभव नहीं है। यह शुक्रवार २३ जून १०९४ ईस्वी के बराबर निर्धारित होती है। प्रमुख ध्येय नरेश नरवर्मन के शासनकाल में बालवंशीय विक्रम नामक ब्राह्मण अधिकारी द्वारा एक तालाब के निर्माण कराने का उल्लेख करना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy