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________________ १३६ परमार अभिलेख वर्तमान में यह दो स्थानों से क्षतिग्रस्त है । शुरू की १२ पंक्तियों का कुछ अंतिम भाग एवं अभिलेख का अंतिम भाग टूट गया है। परन्तु इसमें से अधिक भाग अन्य अभिलेखों की सहायता से पूरा किया जा सकता है। अभिलेख २४ पंक्तियों का है। प्रत्येक पंक्ति में प्रायः ३८ अक्षर हैं। अक्षरों की बनावट सुन्दर है और वे गहरे खुदे हैं। बनावट में ये अक्षर ११वीं सदी की नागरी लिपि में हैं। भाषा संस्कत है व गद्यपद्यमय है। इसमें आठ श्लोक हैं.परन्त अंतिम श्लोक अधरा है। शेष अभिलेख गद्य में हैं । व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, श के स्थान पर स, म् के स्थान पर अनस्वार का प्रयोग सामान्य रूप से किया गया है। र के बाद का व्यञ्जन दोहरा कर दिया गया कहीं पर संधि नहीं की गई है। एकाध स्थान पर अनावश्यक रूप से दण्ड लगा दिए गए हैं। ____ अभिलेख की तिथि पंक्ति क्र. ९-१० में शब्दों में लिखी है। परन्तु वहां वर्षों की संख्या भग्न हो गई है जो अत्यन्त खटकता है। तिथि का पाठ इस इकार है--". . . . . . अधिक ग्यारह सौ संवत्सर में चैत्र सुदि चतुर्दशी को दमनक पर्व पर।" वैसे नरेश उदयादित्य के शासनकाल की तिथियां अन्य आधारों पर ज्ञात हैं। कौस्तुभ स्मृति (पृष्ठ १९-२३) के अनुसार दमनक पर्व वसन्त ऋतु में मनाया जाता है। हेमाद्रि व मदनरत्न के अनुसार दमनक पर्व चैत्र सुदि चतुर्दशी को मनाया जाता है। प्रस्तुत अभिलेख से भी इसकी पुष्टि होती है । अभिलेख का प्रमुख ध्येय पंक्ति ६ व आगे में वर्णित है। इसके अनुसार नरेश उदयादित्य के द्वारा कर्पासिका ग्राम में निवास करते हुए उपरोक्त तिथि को स्नान कर भगवान भवानीपति की विधिपूर्वक अर्चना कर चञ्चुरीणी मण्डल के अन्तर्गत--- द्रह १२ में कोषवर्द्धन दुर्ग में भगवान सोमनाथ देव के भोग के लिए विलपद्रक ग्राम के दान करने का उल्लेख करना है। पंक्ति ३-६ में दानकर्ता नरेश की वंशावली है जिसके अनुसार सर्वश्री वाक्पतिराज देव, सिंधुराज देव, भोज देव व उदयादित्य देव के उल्लेख हैं। इन सभी नरेशों के नामों के साथ पूर्ण राजकीय उपाधियां परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर लगी हुई हैं । अंतिम दो नरेशों के संबंधों के बारे में स्थिति शंकास्पद है, जिसके बारे में पूर्ववणित अभिलेखों में विचार किया जा चुका है। यहां नरेशों के वंश का नामोल्लेख भी नहीं है। ऊपर कहा जा चुका है कि ग्रामदान सोमनाथ के मंदिर के लिए दिया गया था, जो कोषवर्द्धन (शेरगढ़) के दुर्ग में स्थित था। वर्तमान में वह मंदिर शेष नहीं है। परन्तु शेरगढ़ से ही प्राप्त एक अन्य अभिलेख (एपि. इं., भाग २३, पृष्ठ १४१ व आगे) से ज्ञात होता है कि परमारकालीन सोमनाथ मंदिर आधुनिक लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास स्थित है। संभव है कि सुल्तान शेरशाह सूरि के आक्रमण के समय विख्यात सोमनाथ मंदिर ध्वस्त कर दिया गया, तथा न लक्ष्मीनारायण मंदिर छोड़ दिया गया। बाद में जनता ने सोमनाथदेव की मूर्ति पास के मंदिर में स्थापित कर दी। वर्तमान में लक्ष्मीनारायण मंदिर के एक कोने में बने मंडप में शिवलिंग स्थापित है जिसको सोमनाथ कहा जाता है। भौगेलिक स्थानों में चञ्चुरीणी संभवतः वर्तमान चाचुर्णी ग्राम है जो शेरगढ़ से २४ मील दूर पर्वान व निमाज नदियों के संगम पर स्थित है। विलापद्रक संभवतः विलण्डी है जो शेरगढ़ से दक्षिण की ओर ११ मील दूर है। अन्य संभावना यह है कि यह विलवारों ग्राम है, जो शेरगढ़ से पूर्व की ओर २५ मील दूर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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