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शौल्किक -- यह चुंगी अथवा शुल्क अधिकारी था ।
दण्डपाशिक- यह एक अधिकारी था जो अपने हाथ में एक डंडा उठाए रखता था । इसका मुख्य कर्त्तव्य नगर या ग्राम की आंतरिक सुरक्षा का ध्यान रखना था । वह अपराधियों को न्यायालय में प्रस्तुत करता था। भोजदेव द्वारा रचित शृंगारमंजरी कथा में भी इसका उल्लेख मिलता है ( पृष्ठ ८० ) ।
प्रातिराज्यिक - - संभवत: यह कोई ऐसा अधिकारी था जो राज्य के छोटे क्षेत्रों में राजा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता होगा ।
महत्तम -- नगरों व ग्रामों के बड़े-बूढ़े व विशिष्ट व्यक्तियों की गणना महत्तम रूप में होती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि बड़े-बूढ़े नागरिक प्रबन्ध में भाग लेकर अपने ऊपर पर्याप्त उत्तरदायित्व लेते थे । सिंधुराज के अधीन पर्पट नामक एक महत्तम था ( जैन साहित्य और इतिहास, नाथुराम प्रेमी, पृष्ठ २७२, ४१२ ) । भोजदेव रचित शृंगारमंजरी कथा में भी महत्तम का उल्लेख है ।
परमार अभिलेख
निवर्तन -- यह भूमि का एक नाप था । विभिन्न विद्वानों ने इसका विभिन्न मान बतलाया है । पी. एन. विद्यालंकार के अनुसार यह प्रायः एक एकड़ के बराबर था (ए स्टडी इन दी इकॉनोमिक कंडीशन ऑफ एनशंट इंडिया, पृष्ठ ८३ ) । डी. सी. सरकार के गणित के अनुसार यह २४०X२४० वर्ग क्यूबिट अर्थात् प्राय: ३ एकड़ के बराबर था ( सक्सेसर्ज़ ऑफ दी सातवाहनस, पृष्ठ ३००, पादटिप्पणी ) । कोष के अनुसार यह २० रॉड के बराबर होता था । ( एक रॉड = ६ फीट ७३ इंच ) । परन्तु कालवन तालुका से प्राप्त शंकरगण के अमोना ताम्रपत्र के अनुसार यह ४० X ४० दण्ड होता था (का. ई. ई., भाग ४ पृष्ठ ४३ ) ।
द्रम्म -- यह
ग्रीक शब्द Drachma का संस्कृत रूप है तथा उसी सिक्के के मान्य तौल के बराबर होने से द्रम्म कहलाने लगा । सामान्यतः यह नाम रजत सिक्कों के लिए प्रयुक्त होता था जिनका वज़न रजत के ६५ दानों के बराबर होता था ( जर्नल ऑफ न्यूमिस्मेटिक सोसाईटी ऑफ इंडिया, भाग २, पृष्ठ १-१४) । बी. जे. सांडेसरा के अनुसार यह सबसे बड़ा चालू सिक्का था जो सोने या चांदी का होता था । यह द्रम्म पांच रूपक के बराबर होता था ( वही भाग ८, पृष्ठ १४४ ) ।
सांधिविग्रहिक - - यह अधिकारी शांति व युद्ध से संबंधित होता था । वह मित्र नरेशों के राजदूतों का स्वागत करता था और उनको अपने स्वामी नरेश के सामने उपस्थित करता था । साथ ही वह शत्रु नरेशों के राजदूतों से भी बातचीत करता था । राजकीय पत्र व्यवहार और राजाज्ञाओं को लिखवाना व प्रसारित करवाना भी उसी का कार्य था । प्रत्येक नरेश के अतिरिक्त उसके अधीन सामन्त भी अपनी राज्यसभा में ऐसा अधिकारी नियुक्त करते थे । इस पद पर विशिष्ट विद्वान ही नियुक्त होते थे। यहां पर भोजदेव के अधीन सामन्त यशोवर्मन का सांधिविग्रहिक योगेश्वर था जिसने प्रस्तुत अभिलेख लिखवाया था ।
वीसि - - इसके संबंध में निश्चित करना कठिन है ।
मूलपाठ ( प्रथम ताम्रपत्र )
१. स्वि (स्व) ति । श्रीमाम् (न) धारायाम् मेरुमहागिरि - तुङ्गशृंगोपमे प्रवांमू (परमार) त्वये अनेक-समर-संघट्ट[सा] -
२. धित-शत्रुपक्ष - विस्तृत - यसो (शो) ध्वलित-दिगन्तरालः श्रीसीयकदेव-पादानुध्यातः सर[स्व]कृतकाव्यमुक्तसायक-धूम्र्मा ( घूर्णा) यित - सि (शि) र:
३. ति मुखतिलक - भूत (तः ) शत् (तु) -पक्ष
- कविजन
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