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________________ तिलकवाड़ा अभिलेख . अनुवाद, पुस्तक ७, जिल्द १, पृष्ठ २१८) में उक्त नरेश सालवाहन को भोजदेव का समकालीन लिखा है और यह भी कि काश्मीर नरेश अनन्त ने इस नरेश की शक्ति का अवरोध किया था। कनिंघम के मतानुसार उक्त घटना सन् १०२५ व १०३१ ईस्वी के मध्य घटी होगी। (ज्योग्राफी ऑफ ऍन्शंट इंडिया, पृष्ठ १६२)। काश्मीर से भोजदेव का घनिष्ठ संबंध था जो छम्ब के उत्तर में स्थित है (राजतंगिणी, जिल्द १, पृष्ठ २८४)। छम्ब ताम्रपत्र अभिलेख (इंडियन ऐंटिक्वेरी, भाग १७, पृष्ठ ८) से सालवाहनदेव के अन्य सामरिक पराक्रमों के बारे में विदित होता है कि इसने कुरुक्षेत्र में अपने "शत्रुओं के हाथियों" की व्यूहरचना को नष्ट कर 'करिवर्ष' की उपाधि धारण की थी। कुरुक्षेत्र वर्तमान में हरियाना राज्य के करनाल जिले में विख्यात धर्मस्थान है। अतः संभव है कि छम्ब नरेश सालवाहनदेव से भोजदेव की मठभेड कुरुक्षेत्र में हई हो। यह तथ्य, कि सुरादित्य ने साहवाहन को हरा कर भोजदेव की राजलक्ष्मी को स्थिर करने का दावा किया है, संकेत करता है कि इसके अधीश्वर को युद्ध में कुछ प्रारंभिक पराजय सहन करनी पड़ी थी, यद्यपि अन्ततः वह विजयी हुआ। इसके विपरीत डिस्कलकर ( एपि. इं., भाग २१, पृष्ठ १५८-१५९ ) ने मत प्रकट किया है कि साहवाहन वास्तव में चाहमान का ही अपभ्रंश है जिसमें स च में और व य में बदल गया । यह प्राचीन अभिलेखों में सामान्य बात है । इस आधार पर मानना चाहिये कि परमार सेनाओं ने चाहमान राजधानी शाकम्भरी पर अधिकार कर लिया, क्योंकि बाद में नाडोल का चाहमान नरेश अणहिल्ल अपने बंधु की सहायता हेतु आया और इसने वीर्यराम चौहान के उत्तराधिकारी चामुण्डराज को शाकम्भरी के स्वतंत्र करवाने में सहायता की। इस बार उसने भोजराज द्वारा चाहमान राज्य में नियुक्त परमार सेनापति साढ़ का युद्धक्षेत्र में वध कर दिया था (ऐपि. इं., भाग ९, पृष्ठ ७५, श्लोक ९; दशरथ शर्मा-अर्ली चौहान डायनेस्टीज़, पृष्ठ ३५, पादटिप्पणी १६)। भूदानकर्ता श्री जसोराज संभवतः किसी राजघराने का व्यक्ति था क्योंकि इसका पिता सुरादित्य, जो कान्यकुब्ज से आया था व श्रवणभद्र वंशीय था, को नरोत्तम अर्थात पुरुषश्रेष्ठ कहा गया है। इसके अतिरिक्त दान देते समय जसोराज ने अमात्यपुत्रों व प्रधान देशवासियों को बुला भेजा था, जिससे विदित होता है कि इसके द्वारा भुक्त पद में इतनी क्षमता थी कि वह अमात्यपुत्रों को उपस्थिति की आज्ञा दे सकता था। आगे श्लोक क्र. २० में लेखक लिखता है कि यह राजपत्र राजा की आज्ञा से लिखा गया जो संभवत: श्री जसोराज ही था। यह सोचना तो युक्तियुक्त नहीं होगा कि दानपत्र के निस्सृत करते समय जसोराज राजकार्य से मुक्त होकर नर्मदा के किनारे संगमखेट मंडल में धार्मिक जीवन व्यतीत कर रहा था। भौगोलिक स्थानों में तिलकवाडा भूतपूर्व बडोदा राज्य में इसी नाम के एक छोटे महाल का प्रधान कार्यालय था। संगमखेट मंडल भी उसी के पास वर्तमान में सन्खेडा महाल है। तिलकवाडा में नर्मदा व मना (मेना या मेनी) नदियों का संगम होता है। मणेश्वर का मंदिर वहीं पर स्थित आधुनिक मणिनागेश्वर शिव का मंदिर है। तिलकवाडा से प्रायः ११ मील दूर एक ग्राम घंटोली नामक है जिसकी समता अभिलेख के घंटापल्ली ग्राम से की जा सकती है। इसी प्रकार घंटोली से प्रायः २ मील की दूरी पर अन्य ग्राम बेलपुर है जिसकी समता बिलुहज से की जा सकती है। घंटोली ग्राम में घंटेश्वर का मंदिर अब जीर्णशीर्ण अवस्था में है। ऐसा प्रतीत होता है कि ताम्रपत्र, जो इसी मंदिर में सुरक्षित रखे थे, किसी समय नर्मदा नदी की बाढ़ में इस मंदिर के साथ ही बह गये होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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