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________________ देपालपुर अभिलेख ६१ (पं. १२-१३) धारा नगरी में वास करते हुए असंख्य प्राणिवध करने पर प्रायश्चित की दक्षिणा स्वरूप (पं. ८) चर व अचर के स्वामी भगवान भवानिपति की विधिपूर्वक अर्चना कर दान में देना था (पं. १८)। दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मण का विवरण पंक्ति क्र. १४-१७ में दिया हुआ है । वह मान्यखेट से देशान्तरगमन करके मालव राज्य में आया आत्रेय गोत्री, आत्रेय आर्चनानस व श्यावाश्व इन तीन प्रवरों वाला वह वृच शाखी भट्ट सोमेश्वर का पुत्र, वेद अध्ययन से सम्पन्न ब्राह्मण वच्छल (वत्सल) था। पंक्ति २-६ में दानकर्ता नरेश की वंशावली है, जिसके अनुसार सर्वश्री सीयकदेव, वाक्पतिराजदेव, सिंधुराजदेव व भोजदेव के उल्लेख हैं। इन सभी नरेशों के नामों के साथ पूर्ण राजकीय उपाधियां 'परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर' लगी हुई हैं । वंश का नामोल्लेख नहीं हैं। अभिलेख में भूदान के अवसर का तो कोई उल्लेख नहीं है, परन्तु पंक्ति क्र. ८ का पाठ महत्वपूर्ण है । इसका अर्थ यह है कि हमारे द्वारा असंख्य प्राणिवध करने पर प्रायश्चितरूप दक्षिणास्वरूप स्नान कर' (भूदान दिया)। ओझाजी ने इसका अर्थ इस प्रकार लगाया है--'हमारे द्वारा विद्वान ब्राह्मणों के भोजन हेतु की गई प्राणिवध करने पर प्रायश्चित की दक्षिणा स्वरूप..."। परन्तु यह ठीक जचता नहीं। प्रतीत होता है कि यहां नरेश द्वारा चम्बल नदी में स्नान कर भूदान देने की सूचना देना ही है। वैसे इस उल्लेख से इस संभावना को भी बल मिलता है कि भोज ने किसी युद्धभूमि में हजारों व्यक्तियों का वध करने के उपरान्त ही चम्बल नदी में स्नान कर प्रस्तुत भूदान दिया होगा। महाभारत से ज्ञात होता है कि चन्द्रवंशी नरेश रन्तिदेव की भोजनशाला में प्रतिदिन असंख्य अतिथियों (ब्राह्मणों ?) को भोजन करवाया जाता था। इस कार्य के लिये उस ने दो लाख रसोइये नियुक्त कर रखे थे । भोजन के लिये किये जाने वाले पशुवध से एकत्रित चर्म से जो रुधिर धारा बहती थी उससे चर्मणावती (चंबल नदी) की उत्पत्ति हुई थी (द्रोणपर्व, अध्याय ६७, श्लोक १-५)। अभिलेख में निर्दिष्ट भौगोलिक स्थानों में उज्जयिनी पश्चिम पथक वह भूभाग है जिसमें देपालपुर परंगना भी सम्मिलित था । किरिकैक ग्राम इन्दौर जिले के देपालपुर परगना में देपालपुर से प्रायः ६ मील दूर वर्तमान कर्की ग्राम है । यह चंबल के किनारे पर स्थित है। मान्यखेट, जहां से दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मण देशा तर गमन करके मालव प्रदेश में आया था, आंध्र प्रदेश में आधुनिक मालखेद है। मूल पाठ (प्रथम ताम्रपत्र) १. ओं। जयति व्योमकेशौसौ यः सर्गाय वि (बि) भत्ति तां (ताम्) । ऐंदवी सि (शि) रसा लेखां जगद्वी (द्वी) जां कुराकृति (तिम्) ।। [१।।] तन्वन्तु वः स्मरारातेः कल्याणमनिसं (शं) जटा: । कल्पांत-समयोद्दामतडिद्वलय पिंगलाः ।। [२] ३. परमभट्टारक-महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्री सीयकदेव-पादानुध्यात-परमभट्टारक४. महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्री वाक्पतिराजदेव-पादानुध्यात-परमभट्टारक-महाराजाधिराज५. परमेश्वर-श्री सिंधुराजदेव पादानुध्यात-परमभट्टारक-महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्री भोजदे६. वः कुशली। श्रीमदुज्जय (यि)नी-पश्चिम-पथकान्तःपाति-किरिकैकायां समुपगतान्समस्त-राजपु७. रुषान्त्रा (ब्रा) ह्मणोत्तरान्प्रतिनिवासि-पट्टकिल-जनपदादींश्च समादिशत्यस्तु वः संविदितं । यथा ८. श्रीमद्धारावस्थितरस्माभिः पारद्वि (गवि)प्रभृतिकृत-प्राणिवध-प्रायश्चित् दक्षिणायां स्नात्वा चराचर ग- . .." ९, रु भगवन्तं भवानीपति समभ्यर्च्य संसारस्यासारतां दृष्टा (ष्ट्वा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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