SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशेष रूप से भगवान् महावीर ने जिस भाषा में उपदेश दिया वह अर्धमागधी मानी जाती है तो उसका मूल स्वरूप क्या हो सकता है यह डॉ.चन्द्र के संशोधन का विषय है । इसीलिए उन्होंने प्रकाशित जैन आगमों के पाठों की परंपरा का परीक्षण किया हैं और दिखाने का प्रयत्न किया गया है कि भाषा के मूल स्वरूप को बिना जाने ही प्रकाशन हुआ है या किया गया है, अन्यथा एक ही पेरा में एक ही शब्द के जो विविध रूप मिलते हैं वह संभव नहीं था। उन्होंने प्रयन्त किया हैं कि प्राचीन अर्धमागधी का क्या और कैसा स्वरूप हो सकता है उसे प्रस्थापित किया जाय । आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण का भी नयी दष्टि से किया गया अध्ययन प्रस्तुत ग्रन्थ में मिलेगा। उदाहरण के तौर पर 'क्षेत्रज्ञ' शब्द के विविध प्राकृत रूपों को लेकर तथा आचारांग के उपोद्धातरूप प्रथम वाक्य को लेकर जो चर्चा भाषा की दृष्टि से की गयी है वह यह दिखाने के लिए है कि जो अभी तक मुद्रण हुआ है वह भाषा-विज्ञान की दृष्टि से कितना अधूरा है। डो. चन्द्र का यह सर्व प्रथम प्रयत्न प्रशंसा के योग्य है । इतना ही नहीं किन्तु जैनागम के संपादन की प्रक्रिया को नयी दिशा का बोध देने वाला भी है और जो आगम संपादन में रस ले रहे हैं वे सभी डो. चन्द्र के आभारी रहेंगे। . दलसुख मालवणिया ८ ओपेरा सोसायटी अहमदावाद-७ ता. ११-१२-९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001128
Book TitleIn Search of the Original Ardhamagadhi English Translation
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra, N M Kansara, Nagin J Shah, Ramniklal M Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages138
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Language, & Language
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy