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________________ Foreword to The Original Hindi Edition ___ एक विशिष्ट प्रयत्न कई विद्वानों ने जैनागम-आचारांग का समय ई.स.पूर्व ३०० के आसपास रखा है किन्तु अब तक किसी विद्वान् ने उस समय में लिखे गये अशोक के शिलालेखों की भाषा के साथ आचारांग की भाषा की तुलना नहीं की। किसी को यह विचार भी नहीं आया कि जब दोनों का लगभग एक ही समय है तब भाषा में इतना अन्तर क्यों ? दूसरी बात यह है कि भ. महावीर और भ. बुद्ध दोनों ने अपने उपदेश बिहार में दिये हैं तो उस प्रदेश की भाषा में ही दिये होंगे तब फिर जैनागम और पालि पिटक की भाषा में भी समानता क्यों नहीं ? २ ___ इन्हीं प्रश्नों को लेकर डॉ.के.ऋषभ चन्द्र ने सर्व प्रथम अशोक के लेख, पालि पिटक और जैनागम-आचारांग की भाषा का अभ्यास करने का प्रयत्न किया है। मैं साक्षी हूँ कि इसके लिए उन्होंने अपने अभ्यास की सामग्री लगभग ७५ हजार कार्डों में एकत्र की हैं । आचारांग के साथ साथ सूत्रकृतांग, ऋषिभाषित, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक,सुत्तनिपात और अशोक के शिलालेखों के शब्दों के संस्कृत रूपान्तर के साथ कार्ड तैयार करवाये हैं । इसी सामग्री का प्रस्तुत ग्रन्थ "प्राचीन अर्धमागधी की खोज में" में उपयोग किया गया है । उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए जो लेख लिखे उन्हीं का संग्रह प्रस्तुत ग्रंथ में है । प्रस्तुत ग्रन्थ एक छोटी सी पुस्तिका ही है परन्तु उसके पीछे डॉ.चन्द्र का कई वर्षों का प्रयन्त है - यह हमें भूलना नहीं चाहिए । जैनागमों के संशोधन की प्रक्रिया शताधिक वर्षों से चल रही है किन्तु उस प्रक्रिया को एक नयी दिशा यह पुस्तिका दे रही है यह यहाँ ध्यान देने की बात है और इसके लिए विद्वज्जगत् डॉ. चन्द्र का आभारी रहेगा इसमें कोई संशय नहीं है । X Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001128
Book TitleIn Search of the Original Ardhamagadhi English Translation
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra, N M Kansara, Nagin J Shah, Ramniklal M Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages138
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Language, & Language
File Size7 MB
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