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श्री-जीव-विचार-प्रकरणम्
[ आर्यावृत्तम् ]
भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि अबुह-बोहत्थं । जीवसरूवं किंचि वि जह भणियं पुव्वसूरीहिं ॥१॥ जीवा मुत्ता संसा-रिणो य तस थावरा य संसारी। पुढवी-जल-जलण-वाऊ-वणस्सई थावरा नेया ॥२॥ फलिहमणिरयणविदुम-हिंगुलहरियालमणसिलरसिंदा । कणगाइ-धाऊ सेढी वनिय-अरणेट्टय-पलेवा ॥३॥ अब्भय-तूरी-ऊसं मट्टी-पाहाणजाईओ णेगा। सोवीरंजणलुणाई पुढवीभेयाइ इचाइ, ॥४॥ भोमंतरिक्खमुदग ओसा हिम करग हरितणू महिआ। हंति घणोदहिमाई भेआणेगा य आउस्स ॥५॥
इंगाल जाल मुम्मुर उक्कासणि कणग विज्जुमाइया । अगणिजियाणं भेया नायव्वा निउणबुद्धिए
उभामग-उक्कलिया मंडली महसुद्धगुंजवाया य। घणतणुवायाइया भेया खलु वाउकायस्स ॥७॥
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