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________________ मुनिश्री जंबूविजयजीनी आ आवृत्तिनी पोतानी अनेक विशेषताओ छ, जे विशेषताओथी ते तेनी पूर्वगामी आवृत्तिओ करतां निश्चयात्मक प्रकारनो सुधारो सूचवे छे. तेथी ते आपणा सर्व तरफथी आदर माटे योग्य छे. तुलनात्मक अभ्यासथी अव मालम पडे छे के श्री विजयजीओ मूळ ग्रंथनो विगतपूर्ण अभ्यास करेलो छे. तेथी द्वादशार नयचक्रने तेना मूळ स्थाने स्थापवान कार्य वधु चोक्कस अने स्वीकार्य रीते थयेलुं छे. बीजु, तेमनी हस्तप्रतो संबंधी पूर्वसामग्री निःशेषक रीते पूर्ण छे. जुदा जुदा पाठो ज्यां ज्यां मालूम पड्या, त्यां त्यां तेमणे विवेचनात्मक रीते तेनो विचार करेलो छे. ग्रंथन संपादन कार्य करवामां तेओओ निश्चित पद्धति अजमावी छे. तेमणे लखेली टिप्पणीओ महत्त्वपूर्ण अने विद्वत्ताभरेली छे. भारतीय न्यायमां रस धरावती प्रत्येक व्यक्ति तेन मूल्यांकन करी शकशे, भाष्यने भिन्न भिन्न पेरेग्राफमां रजू करवामां आवेल छे, ते दावे छे के आ अति अघरा ग्रंथने तेओ सारी रीते समज्या छे. भोट (तिबेटन) परिशिष्टमां प्रमाणसमुच्चयना मूळ ग्रंथना पाठ स्पष्ट रीते दर्शावे छ के आ ग्रंथना संपादनकार्यमां तेओश्रीओ केटलो परिश्रम लीधेलो छे. तेमणे लखेली प्रस्तावना पण संशोधननी दृष्टिथी मूल्यवान छे. मल्लवादीना जीवन विषेतेमणे हकीकतना तांतणा एक तंते वणी लीधा छे..... अंतमां कहीश के अहीं न्यायग्रंथनी एक आदर्श रीते संपादित आवृत्ति आपणने मळे छे. तेने माटे हं मुनिश्री जंबूविजयजीने मारा आदरपूर्ण अभिनंदनोथी नवाजुं छु. - डॉ. आदिनाथ ने. उपाध्ये शिवाजी युनिवर्सिटी कोल्हापुर For Prvate & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001110
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 3 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size20 MB
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