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________________ ॥ ॐ ही अहं श्री शङेखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥ आचार्य महाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरजीपादपद्मभ्यो नमः । आचार्य महाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरजीपादपद्मभ्यो नमः। . सद्गुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयजीपादपद्मभ्यो नमः .. प्रास्ताविक परम कृपाळु जिनेश्वर परमात्मा तथा सद्गुरुदेवनी कृपाथी आचार्य श्री मल्लवादिविरचित द्वादशार नयचक्रनो 'उभयम् ५, उभयविधिः ६, उभयोभयम् ७, उभयनियमः ८, आ चार अरनो बनेलो बीजो विभाग प्रकाशित करतां अमे अति आनंद अनुभवीए छीए. प्रारभना चार अरनो बनेलो प्रथम विभाग घणा समय.पूर्वे प्रकाशित थई गयो छे. आ मध्यम चार अर पण घणा समय पूर्व छपाई गया हता. बीजा विभागमां संपूर्ण नयचक्रनेबाकी रहेला आठेय अरोने-प्रकाशित करवानी अमारी धारणा हती. प्रथम विभागनी प्रस्तावनामां अमे आ वात जणावी पण हती. छतां अनेक कारणाने लीधे छेल्ला चार अरनुं मुद्रण हजु सुधी थई शक्यु नथी. एटले जेटल छपाई गयं छे तेटल' शीघ्र प्रकाशित करवाना उद्देशथी मात्र वचला चार अरनो बनेलो आ बीजो विभाग प्रकाशित करवामां आवे छे. छल्ला चार अरना शीघ्र मुद्रण माटे अमारा प्रयत्न चालू छे. देवगुरुनी कृपाथी ए पण शीघ्र मुद्रित-प्रकाशित थई वाचकाना हाथमां आवशे एवी अमे आशा राखीए छीए । नयचक्रनु स्वरूप केवु छे ते संबंधमां, मूल ग्रंथकार आचार्य भगवान् मल्लवादी तथा टीकाकार सिंहसूरिगणिवादि क्षमाश्रमणना संबंधमां तेमज आ ग्रंथनी संपादनशैलीना सबंधमा प्रथम विभागनी प्रस्तावनामां अमे विस्तारथी जणाव्युछे. आ संपादनमा आधारभूत मुख्य बे प्रति-एक आचार्यश्री धर्म मूर्तिसूरिजीए लखावेली प्रति तथा बीजी वाचकप्रवर उपाध्यायश्री यशोविजयजी महाराजे बीजा अनेक मुनिवरो साथे मळीने (पखवाडियामांज १८००० श्लोक जेटली) लखेली प्रति-तथा उ० यशोविजय महाराजे लखेली प्रति उपरथी लखायेली प्रतिओनो परिचय प्रथम विभागनी प्रस्तावनामां विस्तारथी आपवामां आवेलो छ । जिज्ञासुओने त्यां जोई लेवा विनति छ । ५ थी ८ अरोनो विषय 'द्रव्य ज परमार्थरूप छे' एवं चतुर्थ अरनु मन्तव्य छे. तेनु खंडन करीने 'द्रव्य तथा क्रिया बने स्वतंत्र रीते पदार्थ छे' आQ उभयनयनु मन्तव्य वैयाकरणोना बिचारोने आधारे ग्रंथकारे पांचमा उभय अरमां वर्णव्यु छे । आ उभय नय नैगमनयनो एकदेश छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001109
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 2 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1976
Total Pages403
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size11 MB
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