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एक रूपकथी आपणने आवी शके. आपणे कल्पना करीए के एक प्राचीन, भव्य अने सुविशाल जिनमंदिर कोई काळ ना बळे ध्वस्त थई गयुं, ए विध्वंस ऊपर सैकाओना तडकाछांयडा वीती गया. दरम्यान मां एना रळियामणा अवशेषो पण माईलो सुधी वेर बिखेर थई गया ! पछी, जाणे कोई शुभ भवितव्यतानो योग जागी ऊठ्यो होय एम, कोई भावनाशील यात्रिकनुं ध्यान ए तीर्थना एकाद सुविशाल अने सुमनोहर अवशेष तरफ गयुं अने एना अंतरमां ए लुप्त जिन मंदिरने उभुं करवानी अदम्य तमन्ना जागी उठी. ए तमन्ना एवी उत्कट के ए एने क्षणभर पण चेन लेवा न दे अने ए मंदिरना नजीक अने दूर वीखरायेला अवशेषोने एकत्र करीने जिन मंदिरनो पुनरुद्धार करवा प्रेरणा आप्याज करे. आरीतनो पुनरुद्धार करवामां केटली जहेमत, केटली महेनत अने चित्तनी केटली एकाग्रता जोईए एनो ख्याल मेळवीए तो पूज्य मुनिश्री जंबूविजयजीए आ ग्रंथना पुनरुद्धारमां जे अतिविरल कार्य करी बतान्युं छे तेनी झांखी थई शके.
आ अति मुश्केल कार्य तेओश्रीए देशपरदेशना विद्वानोनो संपर्क साधी संस्कृत, अर्धमागधी, अंग्रेजी उपरांत तिबेटन, चीनी, फ्रेंच वगेरे भाषाओमां लखायेला संबंधित बौद्ध अने ब्राह्मण ग्रंथोमांथी संदर्भों मेळवी अथांग प्रयत्नोने अंते केवी रीते पार पाड्यं तेनी केटलीक रसप्रद अने प्रेरक विगतो संपादक मुनिश्रीए एमनी प्रस्तावनामां (पृ. ७० ) मां आपी छे, ते सौ कोईए वांचवा जेवी छे. आ कार्यमाटे ओश्रीए खास तिबेटन (भोट) भाषानो अभ्यास कर्यो हतो.
अमारी समाने आ ग्रंथरत्नना प्रकाशननो यश अपाववा बदल मुनिश्री जंबूविजयजीनो अमे कया शब्दमां आभार मानीए ते समजी शकातुं नथी. अमे तो तेओने साभार हृदये एटली ज प्रार्थना करीने संतोष मानीए छीए के तेओनी आवी कृपादृष्टि अमारी सभा उपर हमेशां वरसती रहे.
पूज्य मुनिश्री जंबूविजयजीना गुरुवर्य पूज्य मुनिमहाराज श्री भुवनविजयजी महाराजनो पण आ " कार्यमा जे साथ अने सहकार मळ्यो छे ते माटे अमे तेओनो पण खूब खूब उपकार मानीए छीए. आ ग्रंथ प्रकाशित थायछे ते समये तेओ पोते विद्यमान नथी एनुं उंडुं दुःख सौ कोई अनुभवे ए स्वाभाविक छे. पण आ ग्रंथनो जेवी रीते सफलतापूर्वक पुनरुद्धार थयो छे अने एमां पूज्य मुनिवर्यश्री भुवनविजयजीनो जे अविस्मरणीय फाळो छे, अने जेनी विशेष नोंध प्रस्तावनामां विगतवार आपेली छे, तेने लीघे तेओनुं नाम चिरस्मरणीय बनी शक्युं छे, एमां शंका नथी. ए स्वर्गस्थ पूज्य मुनिवरना पवित्र आत्माने अमे आ प्रसंगे भावपूर्वक अनेकशः वंदना करीए छीए.
कल्पनातीत कठिनाईओथी भरेलुं आ ग्रंथना संपादननुं महाभारत कार्य पूज्य मुनिश्री जंबूविजयजीए सहर्ष स्वीकार्य अने एने सांगोपांग पार उतायुं, ते पूज्यपाद आगम प्रभाकर मुनि महाराज श्री पुण्यविजयजी महाराजना आग्रहभर्या अनुरोधना प्रतापेज. वि. सं. २००१ मां पूज्य मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराजे पूज्य मुनिश्री जंबूविजयजीने आगमोना संपादनने बदले आ आकर ग्रंथनुं संपादन करवानुं भारपूर्वक लख्युं; ते पछी ए माटेनी जरूरी बधीज सामग्री एकत्र करी आपी; अने आ माटे जे कई नवीन सामग्रीनी जरूर पडे तेनी गोठवण करवानुं पण सतत चालू राख्युं, तेमज आ कार्य क्रमे ऋमे निरंतर आगळ व रहे ए माटे पण एओ पूरी चिंता पण सेवता रह्या आ रौते आ ग्रंथना प्रकाशनमां पूज्य मुनिश्री पुण्यविजयजीनो फाळो पण खूबज यादगार बनी रहे एवो छे. ग्रंथना संपादन अने प्रकाशन माटे जरूरी
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