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________________ आर्थिक जोगवाई माटे पण तेओ सतत चिंता सेवता अने जैन संघने ए माटे प्रेरणा आपता रह्या छे, ए कहेवानी जरूर न होय. अमारी सभा साथे वीसमी सदीना एक समर्थ ज्योतिर्धर अने शासन प्रभावक आचार्य महाराज न्यायांभोनिधि श्रीआत्मारामजी महाराज ( श्रीविजयानंदसूरीजी महाराज ) नुं पुण्यनाम जोडाएलुं छे. तेथी ए समुदायना विद्वान् अने संशोधन कार्यदक्ष एवा मुनिवरोनी अमने हमेशां सहायता अने हूंफ मळती रहे छे. तेमां ये पूज्यपाद स्वर्गस्थ प्रवर्तकश्री कान्तिविजयजी महाराज, तेओना संशोधनदक्ष शिष्यरत्न स्वर्गस्थ मुनिश्री चतुरविजयजी महाराज, तेमज तेओना शिष्यरत्न संख्याबंध ज्ञानभंडारोना उद्धारक, आगम तेमज इतर ग्रंथोना समर्थ अने आदर्श संशोधक, पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनिवर्यश्री पुण्यविजयजी महाराज-ए मुनिवर त्रिपुटीनी तो अमारी संस्था ऊपर हमेशां अपार कृपा वरसती रही छे. आ संस्था अत्यार सुधीमा संशोधन-संपादननी दृष्टिए नमूनेदार अने उच्चकोटिना लेखी शकाय एवा जैन साहित्य ग्रंथोनुं जे सारी एवी संख्यामा प्रकाशन करी शकी छे, ते आ मुनिवर त्रिपुटीना हार्दिक सहकारने लीधेज. ___आगम प्रभाकर पूज्य मुनिश्री पुण्यविजय जी महाराज ए तो सौ कोई जिज्ञासुओ अभ्यासीओ अने विद्वानो माटे ज्ञानना अखूट झरणां रूप छे. एमनी उदारता, सरळता अने सहृदयता अति विरल छे. एमनी पासे जुदी जुदी साहित्य प्रवृत्तिओनो केटलो मोटो गंज खडकायेलो हमेशां रहे छे, एतो एमना कार्यथी परिचित होय तेओ ज जाणी शके. पोतानी आवी अनेकविध प्रवृत्तिओना सतत रोकाण वच्चे पण तेओ अमारी संस्था प्रत्ये जे ममता दाखवता रहे छे, अने समये समये जे जरूरी मार्गदर्शन आपता रहे छे, एज अमारं साचं बळ छे. महाराजश्रीनो उपकार शब्दोथी मानवानो उपचार करवाने बदले एमनी कृपादृष्टिनी याचना करवी ए ज अमारे माटे समुचित छे. ___अमारी विनतिनो स्वीकार करीने आवा एक उच्च कोटिना ग्रंथ माटे वियेना युनिवर्सिटीना तत्त्वज्ञान विषयना विद्वान प्रोफेसर एरिच फाउवाल्नेरे उपयुक्त अंग्रेजी प्रस्तावना ( Introduction) लखी आपी छे. आ माटे अमे तेओना प्रत्ये अमारी आभारनी ऊंडी लागणी प्रदर्शित करीए छीए. पूज्य मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराजनी प्रेरणाथी जे जे भावनाशील भाईओ, बहेनो अने संस्थाओए आ कार्यमां अमने उदारता पूर्वक आर्थिक साथ आप्यो छे, तेओना अमे हार्दिक आभारी छी. आ सहायकोनी नामावलि अन्यत्र आपवामां आवेल छे. ___ मुंबईमां सुप्रसिद्ध निर्णयसागर प्रिन्टिंग प्रेसे, पोतानी अनेक मुश्केलीओ बच्चे पण, आ ग्रंथy मुद्रण करवानी जवाबदारी स्वीकारी न होत तो अत्यारे आ ग्रंथ जेवा सुघड, खच्छ अने व्यवस्थित रूपमा प्रगट थायछे ते रूपे भाग्येज प्रकाशित थई शक्यो होत. आ माटे अमे निर्णयसागर प्रेस अने तेना संचालकोनो आभार मानीए छीए. अत्यारे आ ग्रंथना बारमाथी चार अरने समावतो पहेलो भाग अमे प्रगट करीए छीए. अने बाकीनो भाग यथाशक्य शीघ्र प्रगट करवानी अमारी उमेद छे. अमारी ए उमेद सफळ थाओ अने उत्तम कोटिना नवा नवा ग्रंथोना प्रकाशनद्वारा जैन शासननी वधुमां वधु सेवा करवानो अमने अवसर मळो, एवी प्रार्थना साथे अमे आ निवेदन पूरूं करीए छीए. खीमचंद चांपशी शाह, एम् . ए. प्रमुख, जैन आत्मानंद सभा, भावनगर. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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