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________________ ४६ प्रस्तावना ए भाषा जो शीखी लेवामां आवे तो ए टिबेटन भाषांतरोने आधारे नयचक्रमा आवती घणी चर्चाओ स्पष्ट समजाय ए हेतुथी टिबेटन भाषा शीखवानी तथा ए टिबेटन भाषांतरना ग्रंथोने मेळववानी पण में तैयारी करी । नयचक्रनी अत्यंत महत्त्वनी प्रतिनी प्राप्ति त्यारपछी घणी शोधने अंते नयचक्रवृत्तिनी एक अत्यंत दुर्लभ प्रति के जे अमारी धारणा प्रमाणे विश्वमां आ जातनी एक ज प्रति छे अने जे उ० श्रीयशोविजयजी महाराजे वि० सं. १७१० मा लखेली नयचक्रवृत्तिनी प्रतिथी पण लगभग ५०-६० वर्ष पूर्वे लखायेली छे तेनो अमने पत्तो लाग्यो । ए प्रति आचार्यश्री धर्ममूर्तिसूरिना उपदेशथी गोविंदमंत्रिना पुत्र पुंजे लखावी हती अने अत्यारे ए भावनगरनी शेठश्री डोसाभाई अभेचंदनी जैनसंघनी पेढीना ज्ञानभंडारमा छे एटले अमे अहिं अमारा संपादनमा एनी भा० ( भावनगरनी प्रति ) एवी संज्ञा राखी छे । आ भा० प्रतिने घणा प्रयासे मेळवीने अमे जोयुं तो अमारी तमाम प्रतिओमां न हता एवा सेंकडो शुद्ध पाठो एमांथी अमने मळी आव्या । केटलेक ठेकाणे तो अनेकानेक अधिक पंक्तिओ पण एमाथी अमने मळी आवी । पांचमा अरमां पृ० ३९७ पं० १५-पृ० ४०० पं० १८ मां अमारी पासेनी बीजी बधीज प्रतिओमां एक आ पार्नु आगळपाछळ लखाएलुं छे त्यां आ भा० प्रतिमां बराबर पाठ लखाएलो छ । बारमा अरमां बीजी बधी ज प्रतिओमां लगभग एक आखं पानुं पडी गयुं छे त्यां आ भा० प्रतिमां ए पाठ सारी रीते सचवाएलो छे, इत्यादि अनेक विशेषताओ आ भा० प्रतिमां छे। ते ज प्रमाणे भा० प्रतिमां ज्यां सेंकडो स्थळे अशुद्ध पाठो छे तेमज अनेक स्थळे पाठो किंवा पंक्तिओ पडी गयेली छे, त्यां अमारी पासेनी पा० डे० लीं० वि० २० ही० प्रतिओमां शुद्ध पाठो सारी रीते सचवाएला छे । एटले अमारी पासे बे जातनी प्रतिओ थई । एक बाजु भा० प्रति अने बीजी तरफ पा० डे० लीं० वि० २० तथा ही० प्रति । पूज्यपाद न्यायविशारद न्यायाचार्य वाचकवर श्री यशोविजयजी महाराजे वि० सं १७१० मां नयचक्रवृत्तिनी प्राचीन प्रति उपरथी जे प्रति लखेली तेनी अमे अमारा संपादनमा य० संज्ञा राखी छे । पा० डे० लीं० वि० २० ही० आ प्रतिओ य० प्रति उपरथी ज साक्षात् किंवा परंपराए लखवामां आवेली छे, एटले एम पण कही शकाय के एक बाजु भा० प्रति अने बीजी बाजु य० प्रति तथा पा० डे० लीं० वि० रं० ही० प्रतिओ। भावनगर सिवाय भिन्न भिन्न स्थानोना ज्ञान भंडारोमां नयचक्रवृत्तिनी जे प्रतिओ जोवामां आवे छे ते बधी ज आ य० प्रति उपरथी साक्षात् किंवा परंपराए लखवामां आवेली छे एवो अमने अनुभव थयो छे । एटले आ प्रमाणे बन्ने य जातनी नयचक्रवृत्तिनी हस्तलिखित प्रतिओ मळवाथी अमारं संशोधनकार्य घणे अंशे सरल थयुं । जो एक ज जातनी प्रति मळी होत तो आ ग्रंथ घणे अंशे अशुद्ध रहेत, परंतु सद्भाग्ये बन्ने य जातनी प्रतिओ अमने मळी गई तेथी आ ग्रंथना संशोधन, अमारं कार्य घणुं सरळ थयुं । आम छतां बीजं तो घणुं कठिन कार्य अमारे करवानुं हतुं ज, कारणके आ प्रमाणे नयचक्रवृत्तिनी बन्ने य जातनी हस्तलिखित प्रतिओ मळ्या पछी पण लेखकदोषथी परापूर्वथी चाली आवती समान प्रकारनी अनेक अशुद्धिओ बन्ने य जातनी प्रतिओमां हती ज, छतां बीजा अनेक ग्रंथोना आधारे पाठोने शुद्ध करवा माटे अमे यथामति सर्व प्रयत्नो कर्या छ । वळी तपास करतां जणायुं के नयचक्रमूळ तो लगभग ७०० वर्ष पहेलाथी ज नष्ट थई गयेलुं छे अने ते मळवानी अत्यारे आशा ज नथी, एटले नयचक्रमूळ पण अमे वृत्ति उपरथी तैयार करवा मांड्यं । १ जुओ प्राकथन पृ० ३५ टि० १,२,३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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