SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना नयचक्रना संपादननो प्रारंभ शहापुरनुं चोमासुं पूर्ण थया पछी त्यांथी विहार करीने अमे पुना गया । त्यां तेमणे नयचक्रवृत्तिनी अनेक हस्तलिखित प्रतिओ मोकली आपी । पूज्यपाद गुरुदेव श्री १००८ भुवनविजयजी महाराजश्रीना आशीर्वाद मेळवीने में नयचक्रवृत्तिनुं संशोधनकार्य आरंभ्युं । नयचक्रवृत्तिनी प्राचीनमां प्राचीन जेटली हस्तलिखित प्रतिओ मळी शके ते बधी य अमे भेगी करी । परंतु ए तपासतां जणायुं के ए बधी ज प्रतिओ न्यायाचार्य न्यायविशारद वाचकवर श्रीयशोविजयजी महाराजे विक्रम संवत् १७१० मां तैयार करेला आदर्श उपरथी ज साक्षात् अथवा परंपराए लखवामां आवेली हती, एटले उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजे स्वयं लखेला ए आदर्शने शोधी काढवा तथा मेळववा अमे घणो ज प्रयास कर्यो छतां ते समये तो एनो पत्तो न लाग्यो, परंतु पाछळथी बहु मोडो मोडो - प्रस्तुत ग्रंथनो सात आरा जेटलो भाग छपाई गथा पछी —–एनो पत्तो लाग्यो हतो, ए विषे विस्तारथी अमे आगळ जणावीशुं । एटले नयचना संपादनना प्रारंभ समये अमारा पासे आवेली प्रतिओमांथी पा० डे० लीं० वि० रं० ही ० आ छ प्रतिओ पसंद करीने तेना उपरथी अमे संशोधनकार्य आरंभ्युं । वांचतां जणायुं के बधामां घणा अंशे समान ज अशुद्धिओ भरेली हती, वळी नयचक्र मूळ तो हतुं ज नहि तेथी नयचक्रवृत्तिनुं रहस्य समजवानुं तेज संशोधननुं कार्य घणुं जटिल हतुं । एटले संशोधनमाटे बीजा ग्रंथो तरफ में नजर करी, कारण के नयचक्र ए दार्शनिक ग्रंथ होवाथी नयचक्रमां वर्णवेली चर्चा जो बीजा दार्शनिक ग्रंथोमां मळी आवे तो तेना आधारे नयचक्रवृत्तिनुं संशोधनकार्य अमुक अंशे सरल बने, एटला माटे घणा समय सुधी पुनामां रोकाईने त्यांनी आत्मानंद जैन लायब्रेरी, डेक्कन कोलेज, भांडारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्युट, डो० वासुदेव विश्वनाथ गोखले वगेरेना विशाल ग्रंथसंग्रहमांथी पुस्तको मेळवीने जैन-बौद्ध-मीमांसा - सांख्य-वेदांतन्याय आदि दर्शनोना लगभग बधा ज प्राचीन ग्रंथोनुं हुं अवलोकन करी गयो । केटलाक अत्यंत दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथों तेमज अनेक भाषामां देश-परदेशमां छपायेला ग्रंथोने पण घणा घणा प्रयत्ने मेळवीने मनुं पण अवलोकन कर्तुं । आ बधा ग्रंथोमांथी हुं धारतो हतो तेटली सहायता संशोधनमां जोके प्राप्त न थई तो पण माथी संशोधनमां उपयोगी घणी ज सामग्री मळी आवी के जेनो अमे टिप्पणोमां ठाम ठाम निर्देश कर्यो छे । आ संस्करणमां अमे बे जातनां टिप्पणो योजेलां छे । एक तो नयचक्रमां नीचे ज फुटनोटरूपे आपेलां छे, ज्यारे बीजां नयचक्रनी पाछळ जोडेलां छे । ज्यां अमे टिपृ० शब्द वापर्यो छे त्यां आ नयचक्रनी पाछळ जोडेलां टिप्पणोनो ज पृष्ठांक समजवो । ए टिप्पणोमां अमे अनेक परिशिष्टोनी पण संकलना करेली छे; ए बधां टिप्पणो तथा परिशिष्टोनुं अवलोकन करवाथी तथा संपादनमां अमे जे जे ग्रंथोनो उपयोग कर्यो छे ते ग्रंथोनी (टिपृ० १४७ पछी जोडेली) सूची उपर दृष्टिपात करवाथी केटला विशाळ प्रमाणमां अमे प्राचीन अर्वाचीन ग्रंथराशिनो उपयोग कर्यो छे ए वस्तु वाचको स्वयमेव सारी रीते जाणी शकशे । ४५ नयचक्रवृत्ति संपूर्ण वांची गया पछी मने लाग्युं के सांख्य-वैशेषिक- बौद्ध आदि दर्शनोना जे जे ग्रंथोनुं नयचक्रमां खंडन करेलुं छे तेमांथी मोटा भागनुं साहित्य आजे नामशेष थई गयुं छे, तेम छतां नयचक्रमां जे बौद्धग्रंथोनी समीक्षा करवामां आवी छे ते बौद्धग्रंथो संस्कृतभाषामा आजे नष्ट थई गया होवा छतां तेमांना केटलाक ग्रंथोनुं टिबेटन भाषामा लगभग १००० वर्षो पूर्वे थरलं भाषांतर मळे छे, एटले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy