SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना आव्यो हतो। तेथी अमारी धारणा साची पडी हती । आ प्रमाणे बीजा स्थळोमां पण टिबटन ग्रंथोनो संशोधनमा उपयोग कर्यो छ। . पृष्ठांकस्पष्टीकरण आ मुद्रित ग्रंथमां बे जातना पृष्ठांको अमे आपेला छे । एक पृष्ठांक जे दरेक पानाना मथाळे छे ते आ मुद्रित ग्रंथनो पृष्ठांक छ । बीजो पृष्ठांक जे दरेक पानाना मार्जिनमां आपेलो छे ते हस्तलिखित भा० प्रतिनो पृष्ठांक छ अने ते खास हेतु पूर्वक अहीं आपवामां आव्यो छे । नयचक्रमूल तथा वृत्तिना केटलाक पाठोना स्पष्टीकरण, सनर्थन तथा संशोधन माटे नयचक्रवृत्तिमा रहेला पूर्वापर संदर्भोनो अमे ठाम ठाम उपयोग कर्यो छे । अने ते ते संदर्भो कया कया पृष्ठमां आवेला छे ते पण अमे टिप्पणोमां जाणाव्युं छे । मुद्रणकार्य चालतुं हतुं त्यारे मुद्रित थई गयेला पाठ माटे तो अमे मुद्रित पृष्ठांक आप्यो छे, पण जे अंश भविष्यमा मुद्रित थवानो हतो ते माटे भा० प्रतिना पृष्ठांकनो अमे निर्देश कर्यो छे । भा० प्रतिमा एकंदर ५७२ पत्र छे, दरेक पत्रमा उपरतुं अने नीचे- एम बे पृष्ठ छे । भा० प्रतिमा जे जे भाग जे जे पृष्ठमां शरू थाय छे ते ते भागनी समीपमा मुद्रित नयचक्रवृत्तिमा मार्जिनमां ( हांसियामां) भा० प्रतिना ते ते पृष्ठांक आखाय ग्रंथमां सळंग आपेला छे, जेमके २-१ एटले भा० प्रतिना बीजा पत्रनुं प्रथम पृष्ठ, २-२ एटले बीजा पत्रवें बीजं पृष्ठ, ए प्रमाणे ३-१, ३-२ वगेरेनो अर्थ पण समजी लेवो, स्थूल टाईपमां छापेलो प्रथम अंक भा० प्रतिनो पत्रांक दर्शावे छे, ज्यारे बीजो अंक १ अने २ अनुक्रमे उपरनुं तथा नीचेनुं पृष्ठ दर्शाये छे। जेमके मुद्रित पृ० ९ पं० २२ मां भवति शुद्धपदोच्चारणवद्' एवो पाठ छे, आनुं विस्तारथी स्पष्टीकरण नयचक्रवृत्तिमां अंतभागे भा० प्रतिना पृ० ५६८-१ मां आवे छे, एटले ए भाग जोई लेवा माटे अमे वाचकोने मुद्रित पृ० ९ टि० १० मां भलामण करी छे, अर्थात मुद्रित नय चक्रवृत्तिमां अंतभागमा मार्जिनमां ज्यां ५६८-१ लख्युं होय त्यां वाचकोए ए भाग जोई लेयो। आ रीते पृ० ३३ टि० ७, पृ० ४५ टि० ९ वगेरे अनेक स्थळे स्पष्टीकरणादि माटे भा० प्रतिना ते ते पृष्ठांको साथे संबंध धरावता पाठो जोवानी भलामण करी छे । टिप्पणो आ मुद्रित ग्रंथमां बे प्रकारनां टिप्पणो छे--एक तो नयचक्रमां ज नीचे फुटनोटरूपे आपेला छे, ज्यारे बीजां नयचक्रनी पाछळ जोडेलां छ । फुटनोटमा मुख्यतया पाठांतरो आपेलां छे, छतां केटलेक स्थळे बीजी पण महत्त्वनी सामग्री रजु करेली छे, केटलाक मां अमे स्वीकारला पाठनुं समर्थन छे, केटलाकमां स्पष्टीकरण छ, केटलाकमां ऐतिहासिक दृष्टिए तुलना आदि छ । नयचक्रनी पाछळ जे टिप्पणो जोडेलां छे ते घणां विस्तृत छे । नयचक्र तथा नय चक्रवृत्तिमां आवता ते ते पाठोनुं समर्थन, स्पष्टीकरण तथा तुलना आदि ए टिप्पणोमां विस्तारथी आपेलु छ । संशोधन, समर्थन अने स्पष्टीकरण बने त्यां सुधी बीजा ग्रंथोना आधारथी करवू के जेथी ए प्रमाणभूत बने आ अमारी पद्धति छ । तेथी ए कार्यमां अमे जे अनेक प्राचीन-अर्वाचीन ग्रंथोना पाठोनो आधार लीधो छे तेनो उल्लेख आ टिप्पणोमा अमे स्थळे स्थळे कर्यो छे । नयचक्र छपाती वखते जे केटलीक अशुद्धिओ रही नय. प्र. ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy