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________________ [ पुरुषार्थसिद्धयु पाय गंभीर शूरवीर आत्माएँ समर्थ हैं । तप करना खेल नहीं है, उसका करना लोहेके चनोंका चबाना है । यदि तपश्चर्या सुगम हो, तो हर-एक प्राणी सुगमतासे मोक्ष-महलमें जा सकता है, परन्तु नहीं, मुत्रिवधूका वही स्वामी बन सकता है जो आत्माको ध्यानाग्निके प्रज्वलित एवं महाभयंकर अग्निकुण्डमें शीलवतकी तपश्चर्या करनेवाली सीतादेवीके समान डाल देता है। परन्तु तपश्चर्या महाकठिन होनेपर भी साहसी एवं धर्मपरायण आत्माओंद्वारा साध्य भी तुरन्त की जाती है । क्या कोई स्त्री अग्निकुण्डमें कूदनेके लिए सहसा तैयार हो सकती है ? परन्तु सीता जैसी सतियोंको अग्निकुण्डमें कूदना कोई कठिन बात भी नहीं है ? क्या स्वामी सुकुम्मालसे ऐसे घोर तपश्चरण एवं उपसर्ग सहन करनेकी कोई कल्पना भी कर सकता था ? नहीं, परन्तु उन्हीं स्वामी सुकुमालने मुनिमहाराजका उपदेश मिलने पर शरीरसे सर्वथा ममत्व छोड़ दिया, फिर उन्होंने कोमलता और कठोरताको अपनी वस्तु समझा ही नहीं । इस कथनका यही प्रयोजन है कि आत्माओंमें अचिन्त्य शक्तियां विद्यमान हैं; केवल उन्हें व्यक्त करनेके लिए उत्तेजक उपदेश तथा आदर्शपुरुषोंके समागमकी आवश्यकता है । फिर उनके सुधार में कुछ देर नहीं लगती। एक बात यह भी है, कि प्रारंभमें जीवोंको ऐसा ही उपदेश वारंवार देना चाहिये जिससे कि वे मोक्षके अभिलाषी वन कर साक्षात् मुनिपद धारण करने के लिये उद्यत हो जांय । जहां एकवार उनमें वैसे भाव जागृत हो गये, फिर झट बेड़ा पार है । वास्तवमें सदुपदेश वही हो सकता है जो पूर्ण सुधारका कारण हो । इसलिये सबसे प्रथम जीवोंको मुनिधर्मका ही उपदेश देना योग्य है। यदि एकवारके उपदेशसे वे मार्गपर नहीं आसकें तो दूसरीवार, तीसरीवार, चौथीवार एवं दश-बीसवारमें तो पूर्ण मार्गपर चलनेके लिये समुद्यत हो ही जायेंगे ! जो अनेकोंवार उपदेश मिलने पर भी मुनिपद धारण करनेमें असमर्थ हैं. उस साहसहीन निर्बल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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