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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] देश हो घात होता है । इसलिये इसप्रकारके शनिवाले कर्मों को देशघाति प्रकृतियों के नामसे पुकारा जाता है । इसप्रकार जैसी जैसी कवायभावों की तीव्रता या मंदता होती है, वैसी वैसी कर्मों की फलदानशक्तिमें तरतमता होती है; और जैसा जैसा कर्मो का उदय आता है, वैसा वैसा विभावभाव आत्मामें उत्पन्न होता है । यही कर्म और जीवमें निमित्त-नैमित्तिक संबंध हैं। इस संबंधको दूसरे दृष्टांतद्वारा भी बतलाते हैं जैसे 'फोटोग्राफर' ( तस्वीर वा प्रतिबिंब उतारनेवाला ) 'फोटो' ( तस्वीर वा प्रतिबिंब ) लेते समय एक ऐसा 'कैमरा' ( तस्वीर उतारनेका यंत्र ) सामने रखता है जिसके कांचमें ज्योंको-त्यों छवि आनेकी योग्यता रहती है । जिसप्रकारकी चेष्टा अथवा व्यापार फोटो उतरवानेवाले पुरुषका उससमय होता है, फोटोवाले कांचमें वह ज्योंका त्यों अंकित हो जाता है । यह गुण उस कांचमें लगे हुए मसालेका है । यदि उस कांचले वह मसाला दूर कर दिया जाय, तो फिर उस निर्मल कांचमें यह शक्रि नहीं रहती कि वह सामने बैठे हुए पुरुषके आकार एवं चेष्टाको अंकित कर सके । इसीप्रकार आत्मा के जिससमय जैसे जैसे मन-वचन कायके व्यापारसे शुभ-अशुभ भाव उत्पन्न होते हैं, आनेवाले कर्मों में उससमय वैसा वैसा ही फलदानशकिके रसका तारतम्य अंकित हो जाता है। जिससमय कोई पुरुष किसीको मारनेके परिणाम करता है, उससमय उन आनेवाले कर्मों में उसी जातिका रस पड़ता है; जिससे कि उन कर्मो के उदय आनेपर उसे उसी जातिका फल मिलता है । अर्थात् किसीका भाव यह हो कि 'मैं अमुक पुरुषको मारू, तो उससमय जो कर्म उस आत्मामें बँध रहा है, उसमें वही रसशकि पड़ चुकी है कि उस कर्मके उदयमें वह भी दूसरेसे मारा जायगा । जो दूसरे को सताता है, वह दूसरों-द्वारा सताया जाता है और जो दूसरोंकी भलाई करता है, वह दूसरों द्वारा भलाई पाता है। इसका तत्व हूंढनेसे यही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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