SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [ ५७ और तेजसवर्गणासे तेजस शरीर बनता है । इन वर्गणाओंसे बननेवाली पर्यायोंको नोकर्म इसलिए कहा गया है कि वे आत्माके गुणोंका साक्षात् घात नहीं करती हैं, किन्तु उन गुणोंके घात होने में कर्मों की सहायता करती हैं । इसीलिये उन्हें नोकर्म अर्थात् ईषत्कर्म ( थोड़ा ) - रूप संज्ञा दी गई है । कार्माण वर्गणाओंकी कर्म-पर्याय होती है; वह किसप्रकार बनती है, उसका खुलासा इसप्रकार है । संसार में सर्वत्र सूक्ष्म कार्माण वर्गणाएँ और नो - कार्माणवर्गणाएँ भरी हुयीं हैं । जिससमय जीव मनोयोग कामयोग अथवा वचनयोगकी प्रवृत्ति से चंचलित होता है, उस समय आत्मा के प्रदेश सकम्प होने लगते हैं । आत्माकी वह सकम्प अवस्था ही उन सूक्ष्म वर्गणाओंको खींचने में समर्थ होती है जिस समय आत्मा अपने तीनों योगों में योग्यतानुसार, जिस किसी योग द्वारा भी, वर्गणाओंका आकर्षण करता है, उससमय सकषाय- रूप परिणाम उन वर्गणाओं में आत्मीयगुणों के घात करनेकी योग्यता उत्पन्न कर देते हैं । जिससमय आत्मा योग द्वारा वर्गणाओंको खींचकर अपनेसे सम्बन्ध करता है, उसी समय उन वर्गणाओंकी वर्गणारूप पर्याय नष्ट होकर कर्मरूप पर्याय हो जाती है । कर्मपर्याय होनेमें जीवके रागद्वेषादिक भाव निमित्तकारण पड़ जाते हैं; परंतु कर्मपर्याय पुद्गलद्रव्यकी ही पर्याय है, वह कर्म रूप परिणामके धारण करनेपर भी रूप-रस-गंध-स्पर्शरूप जड़ताको नहीं छोड़ सकती । जिन कर्मो का आत्मा सम्बन्ध कर लेता है, वे ही आवाधाकाल के पीछे उदयमें आने लगते हैं, और उन्हींके उदयसे आत्माके विभावभाव रागद्वेषादिक होते हैं । जो कार्माण वर्गणाएँ कर्मरूप पर्यायको धारण करनेवाली हैं, उनकी 'द्रव्यबंध' संज्ञा है । पुद्गलपिंडको 'द्रव्य' कहते हैं, और उसमें बँधनेको 'बंध' । आत्मामें बंधनेकी शक्ति केवल कार्माण एवं नोकामणवर्गाओं में ही है, पुद्गलकी पर्यायोंमें नहीं है । जैसे चुम्बक 1 ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy